Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
अनशन तप
उपसंहार अनशन में मूलतः आहार त्याग एवं कपार व दोर विशुद्धि रहती है, यह तो प्रत्येल. अनगन में ही समान है। यदि आहारत्याग के साथ कापायपर्जना नहीं होती तो यह अनशन भी नहीं होता। शोध आदि के बस में मोह में फंस कर, दुःखी होकार पलेरा, प राग आदि के निमित्त से प्रेक्ति होकर समुद्र में यूदना, पूए में गिरना, ऊपर से छलांग लगाना, किसी भी प्रकार आत्महत्या करना · शरीर छोद देना, यह महापाप है। गोंकि ऐसी स्थिति में पानी की भावनाए बड़ी कनुपित रहती है, बामोन, वेष . और शेप से जलसा हुआ यह मृत्यु प्राप्त गरेगा को अगले भाव में भी बना रहेगा। मन में कहा गया है.---जागा जिन नेण्याओं परिणामों एवं भावनाओं में ग्रा, प्राप्त मारता है, उन्ही संस्थाओं आदिको परिणति में आगे जन्म ग्रहण मारता है। वास्तविकता तो यह है कि आने जिस प्रकार गो गति में जन्म लेना होता है उसकी आनुपूर्वी यहीं पर मामाती है। मरते समय यदि कोई अशांति और संपलंग के साथ मरता तो समझ लेना पाहिए भगनी गति भी उसकी पैनी ही होगी। मृत्यु पं. मगर यदि जाति, समाधि और प्रारमता के नाम प्राण त्यागता है तो यह उनके आगामी भय . मा पद निमम आगे भीमा सद्गति मे जायेगा।
मृत्यु को गुमर, माहिम नमाधिपूर्ण बनाने में दिन को अना रामपा, मन भिमा या अनमना मनु बालय में एक मूगर र माहो-ही जीवन की परिपूति ।