Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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बनधर्म में तप .
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उपाध्याय, साधु, ज्ञान, दर्शन,चारित्र व तप-इन नौ पदों की आराधना स्वरूप वर्ष में दो बार नो-नो आयंबिल किये जाते हैं, जिसे आयबिल को भोली कही जाती है। यह नंग शुक्ला सप्तमी से पूर्णिमा तक, तथा आश्विन शुक्ला सप्तमी से पूर्णिमा तक चलती है।
पांच पदों के १०८ गुण होते हैं-अरिहंतों के १२, सिद्धों के ८, आचार्यो के ३६, उपाध्याय के २५ तथा साधुजी के २७---कुल १०८ । इन गुणों की माराधना गी भावना के साथ उतने-उतने दिनों का उपवास या आयंबिल आदि किया जाता है । जैसे अरिहंतों के १२ गुणों को आराधना के लिए १२ उपवास । इसी प्रकार अन्य गुणों की आराधना के लिए उतने उपवास करना। सम्यक्त्व, ज्ञान आदि की आराधना के लिए भी उन गुणों के अनुसार उतने-उतने उपवास नादि करना । इस प्रकार प्राचीन महापुरुषों के विविध गुणों का निमित्त लेकर तप को आराधना करने की परिपाटी भी आज प्रचलित है।
संवत्सरी, नातुर्मासी, पूर्णिमा, नदी, पांच तिथियों को उपवास, पगुंपण के बाठ दिन उपवास करना ये सब पर्वलक्षी तप कहे जा सकते हैं ।
यही नहीं आगम आदि को वागना करते समय भी बार किया जाता है। इसका उद्देशान के प्रति विनय, तथा शास्वाध्याय की निविप्न समाप्ति की भावना है। पास्त्र के प्रति मादर बुद्धि गोगो गो उगा बाप मान भी सम्मा कप में परिणत होगा। मष्टि में बनेगा मार के सप किये जाने -निक 'उपधान तप' कहते हैं।
नाकेनों का पूरा लक्षण हो ।जीवन में किलोनी प्रेरणा दिनी भी निमिताने मंग, त्यागतमा मनोनिया की भागना जो नया उगे और पनि यो । भोग-निमाग गेट
माग HTR में परमा गरे। प्रमोशन में सभी
नाम चमोली
मार