Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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जैन धर्म में का
निग्रहीत करना अनशन तप की साधना है। इस साधना से शरीर द्वि भी होती है और मन की भी । जैसा कि पूर्व में बताया गया हैन-अर्थात् उपवास मादि शरीर का सबसे बड़ा चिकित्सक है। एक तिक चिकित्सक से पूछा गया-संसार में सबसे अच्छा डाक्टर कोन ..
और कौन सी चिकित्सा सबसे अच्छी है ? उसने उत्तर दिया-संसार सबसे अच्छे डाक्टर पांच हैं- १ उपवास
२ मिट्टी ३ जल
४ हवा
कित्ता है । गांधी जाता है।" बहुत सार रप स्व होते हैं, और सा से दूर हो जाता। इसीलिए शुरूप
में न आगा।
५ धूप और इन पांचों की राय से जो चिकित्सा की जाती है वही निकित्सा .. सबसे अच्छी है।
प्राकृतिक चिकित्सा में शरीर शुद्धि के लिए उपयास सबसे पहली. निकित्ता है । गांधी जी का विश्वास था-"उपवास से शारीरिक दोष दूर होते हैं, और मनोबल बढ़ता है।" बहुत से दुःसाध्य प्रतीत होने वाले रोग उपवास चिकित्सा से दूर हो जाते हैं। शरीर रूप स्वर्ण को तपाफर निसारने वाली अग्नि है-उपवास ! इसीलिए शुकरूप धारी इन्द्र ने जय वागभट्ट से पूछा कि जो न भूमि में पैदा होती हो, न जल में न थापान में। जिसमें कोई रस भी नहीं, और कहीं बाजार में रारीदने पर लाया रुपये में भी नहीं मिलती-मिन्तु जिसके सेवन से शरीर में समस्त दोप दूर हो जाते हैं ऐसी परम औषधि क्या है ? वद ? चैध ! किमौषधम् ?-- . चंदाराज ! बतलाए ऐनो औषधि क्या है?
आयुर्वेदश यागभट्ट ने गोनकर उत्तर दिया-ती परम औषधि तो मसार में कही है और वह है-संधन परमौषधम् -लंघन ! उपचार । महमद रोगों को दूर करने वाली रमापन है।
कर के. साग-गाय उसयाम मन को नी कुल मारता है। मानसिक विमारों को जाने के लिए, हमालि लिए गया बदमार श्रीर होई मान नहीं है। इसलिए गीता में भी महा