Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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जैन धर्म में वर
(३) धन तप - प्रतर को श्रेणी से गुणा करना धन है । जैसे सोलह की संख्या 'प्रतर' हुई, इसे श्रेणी ४ की संख्या से गुणा करने पर ६४ की संख्या बाई, यह घन संख्या कहलाती है । इस संख्या के क्रम से किया जानेवाला तप घन तप कहलाता है। श्रेणी तप में ४ कोष्ठक की श्रेणी चार बार तिम्रो गई, उसमें कुल १६ कोष्ठक बने। इसमें ८ कोष्ठक को श्रेणी वार ि
जायेगी । जैसे
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पूर्ण करने में ३६ दिन उपवास के और
पार के कुल ४४ दिन लगते हैं। आठ श्रेणी पूर्ण होने में कुल ३५२ दिन
है। जिनमें ६४ दिन भोजन के और २८०त के होने है। (४) वर्ग-घन कोन से गुणा करना वर्ग है। यहां ६४ को ६४ चारने पर ४०६६ को संस्था आई है यही है। इसेवा गुना करना वर्ग तप है।
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(५.) -तप-वर्ग है। जैसे वर्गी संया ४०१६ के मया ४०१६ से गुणा करने पर आती है यह है १६७७७२१६
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एम से जो गए किया जाता है।