Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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मनमन तप
_____(६) प्रफी तप है। भिन्तु यदि साध को प्रकीर्ण तप कही
१८५ (६) प्रफीर्ण तप-प्रेणी आदि तपों में एक निश्चित विधि रहती है, निश्चित कालमान रहता है। किन्तु यदि साधक यथाशक्ति जैसा चाहे वैसा तप करना चाहे तो भी कर सकता है उस तप को प्रकीर्ण तप महते हैं। प्रकोण का अर्थ है फुटकर ! इनमें नवकारसी से लेकर परमध्यचन्द्र प्रतिमा, पचमध्यचन्द्र प्रतिमा,गुणरत्न संवत्सर आदि सभी तप लाजाते हैं। इन तपों का विस्तृत वर्णन आगमों में व टीका ग्रन्थों में अलग-अलग स्थान पर प्राप्त होता है। अधिकतर तपों का वर्णन अंतगड़ मूम में आता है। वासुदेव श्री नो १० रानियां काली महाकाली आदि ने भगवान अरिष्टनेमि के सानिध्य में दीक्षा ग्रहण कर जो विविध प्रकार की परमर्वाएं की उनका वर्णन अंशगद में किया गया है। गुछ तपों का अन्या भी वर्णन आता है ! संक्षेप में Ei उन तपों गा वर्णन किया जाता है।
(१) नयकारली . सूर्योदय से लेकर दो पड़ी दिन महेताः अमात मुरन भर में लिए बिना नमस्कार मंत्र पढ़े, आहार पानी ग्रहण नहीं करना।
गगा दूसरा नाम नमस्मारिका भी है। बोलतानी माता गंगकारली गरसे।। नमस्कार मंच पड़गार ही उसका पारणा किया जाता है. इस कारण इगे नमस्कार गहिता' भी ना जाता । प्राचीन सपा के अनुसार नारमी नोशिकार हो होती है। इनके गढिगाष्ट्रिय मुदित मादि अनेक
(२) पौरपी-- गुोरम ने मेरा पर निबनकमा प्रसार साहार करना गोपी नरोला gram हामा' रानी माय में जब पीना शामिना पासो अदा सो आदिको गतिमान amart एर रहिन पर मरमा पटो अपने और प्रमा जानीमानमारकी
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