Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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अनशन तप
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ये रात्रौ सर्वदाहारं वर्जयन्ति सुमेधसः मासेन जायते । तेषां पक्षोपवासस्य फलं
महीने में प
भी भोजन का
जो बुद्धिमान गरिभोजन का त्याग कर देते हैं उनको दिन के उपवास का फल स्वतः मिल जाता है। धर्म एवं नीति भारत में दिन में ही माना है। रात को ग्राना, धर्म, दया आदि दही किन्तु स्वास्थ्य की दृष्टि में भी बहुत हानिआयने रात्रिभोजन को अक्षय भोजन कहा है-रात्री अनेक परिणाम है, जिनका दम्
को दृष्टि से
कारक
I
भूतमभोजनम्-इ
पद्य में कराया गया है
१८७
कैरो के भरोसे मुख मेंढकी को योग वप्यो,
लापसी में छिपकली देवी जीव धावो । नाव को काली कुल्हे वृक गिरयो है आय, घुटे लेता गाय धरा पर जा गि अहि लार और परी सोच में स्वानी, विको प्राण गयो बाप । रात्रिभोज दुस्तान जाती पनसान कीजे,
'मिनी' भनत पाप मेरा मत दो ||
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म एवं
कोकना चाहिए।
कात आवरण में है प प्रदान करने में है।
वर्णन
में!
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, अहित
(१०) चतुभधर्म पर
है।
1
भयका अर्थ है दिन में एक बार का भोजन पर दिन में की मेदिनीन पार भवन शिवा करवाने पर के नही कृणा त्यादिना और
भाभोजन कायम है f यह कृत अर्थ रूप ही काम में भी और समीरण में