Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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शान्तिपूर्वक संपन में मार भोजन अपने सिर का महान्
अनशन तप F--क्षुधा वेदनीय को शान्त करने के लिए अर्थात् भूग मिटाने के लिए। २-यावृाय अर्थात् बालक, वृद्ध, रोगी, गुरु तपस्वी आदि की सेवा करने
के लिए। ३.--र्यासमिति का पालन करने के लिए । भूब से चलना ठीक तरह नहीं
हो पाता, नतः ठीक यतनापूर्वक नलने के लिए आवश्यक भोजन
जरूरी है। ४--संयम पालन के लिए, मन आदि का निग्रह करने के लिए। ५-प्राणधारण करने के लिए। ६-धर्म का चिन्तन करने के लिए। ध्यान आदि मियाओं को स्थिरता व
शान्तिपूर्वक संपन्न करने के लिए।
इन छह कारणों में हमारे भोजन के, और यों यह तो जीवन जीने के मुख्य उद्देश्य आ गये हैं। मनुष्य सिर्फ अपने लिए ही नहीं जीता है, पेट मे लिए ही जीना पाप है । उनके जीवन में कोई न कोई महान् उद्देश्य होता है । सेवा, त्याग, परोपकार, संयम साधना, हिना व दया गा पालनप्रसार आदि । न उश्यों को पूरा करने के लिए गवीर को सबल होना भी जरूरी है, गोंकि मरीर भवन रहता है. समर्म राता, तो दानों को मैया भी की जा नाती है। जो गुलही दुर्थन होगा, बोगी मोगा का दूसनों को सेवा गया करेगा, जो तो स्वयं सेवा की जान ले होस्या मारने के लिए भी शरीर मम होना चाहिए । पानी में सामान है.--- पार हार नहीं हुदै । जो गाता, पर यमाला भी। जो गोडा साना पायेगा, या मालिक के लिए कोई गा भी ! जो सारीर भोजन आदि पुष्प बनेगा पर समय पर याग तपस्या कादि करने में भी आगे गोगा कि गदि गरीर पाने में आगे और मेगा में पोर को पार कर मार पया नामकाजी मनिशान के महाराष्ट-पुष्ट मिना गुल से मना करने को को
? राजांनी तोकारको
पनि सेमिनी मार है ? मारेको मोटर की