Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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जैन धम म त५
तो जलन
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। भोजन सात्विक प्रकृति वाले मनुष्यों को प्रिय होता है अतः यह त्वक आहार कहलाता है।
फट्वम्ललवणात्युप्ण- तीक्ष्ण - रक्ष विदाहितः। ___ आहारा राजसस्येष्टा दुःख - शोकामयप्रदाः । -अति कडुवे, अति खट्टे अति नमकीन, अति उष्ण तीसे, सो, जलन पैदा करने वाले, खाने से दुःख शोक एवं रोग उत्पन्न करने वाले भोग्य पदार्थ राजस प्रकृति वाले मनुष्यों को प्रिय लगते है, अतः यह राजस आहार कहलाता है।
यातयाम गतरसं पूति पयुपितं च तत्
उच्छिष्टमपि चामेध्यं भोजनं तामसप्रियम् ।। बहुत देर का पका हुआ, रस रहित, दुर्गन्धित, वासी, जूठा, तथा अपवित्र भोजन तामस प्रकृति वालों को अच्छा लगता है अत: यह तामस आहार कहा जाता है।
आहार शुद्धि जिस प्रकार का भोजन किया जाता है, वैसे ही विचार मन में उत्पन्न होते हैं ? यदि शुद्ध सात्त्विक भोजन किया जायेगा तो विचार भी शुद्ध और सात्विक रहेंगे । काम, क्रोध आदि की जागृति कम होगी। मन पवित्र रहेगा। इसके विपरीत भोजन में यदि उत्तेजक पदार्थ लिये जायेंगे मिर्गमसाला, तोरी चनंरे तथा गरिष्ठ पदार्थों का सेवन किया जायेगा तो यह विकार बढ़ायेगा मन को चंचल बनायेगा । शास्त्र में कहा है
पणीय भत्त पाणं तु खिप्पं मयपिवणं प्रणीत-सदार तेज मसाले बाला गरिष्ठ भोजन तुरन्त ही शरीर में उत्तेजना फैला देता है, मद-अर्थात् काम-मोध की जागृति करता है। और मस्तिष्क को अशान्त कर देता है। क्योंकि अन्न का प्रभाव सीमा मन। पर पड़ता है । अतः इन कहायतों में बहुत ही सच्चाई है।
मे १०
१ भगवद गीता १७ मतो
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