Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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तप का वर्गीकरण
• तप की अनेक परिभाषाओं में एक सर्वसामान्य परिभाषा बताई गई है-इच्छा का निरोध-तप है । वास्तव में जैनधर्म के आगम और उत्तरवर्ती ग्रंथों में तप का इतना विस्तृत और बहुविध वर्णन किया गया है कि उसके समग्र रूप को किसी एक परिभाषा में बांध पाना बहुत कठिन है । जैसे महासागर की गंभीरता को, गगन की असीमता को, हाथ फैलाकर, भुजाएं लम्वाकर बता पाना एक वाल प्रयत्न है, वैसा ही तप को किसी एक व्याख्या व एक परिभाषा में बांध पाना बाल क्रीड़ा मात्र है।
शुद्धि और सिटि तप जीवन के अन्तर्तम को शोधने की एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है । तप के विविध अंगों पर विचार करने से लगता है, साधना के क्षेत्र में, जीवन शुद्धि के क्षेत्र में ऐसा कोई भी अंग बाकी नहीं बचा है जिसको तप में अन्तर्गत नहीं लिया गया हो । व्यक्तिगत जीवन से लेकर समाज एवं समग्न विश्व के साथ जितने, जहां-तहां सम्बन्ध भाते हैं उन सब सम्बन्धों में तप की