Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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तप (मोक्षमार्ग) का पलिमंथु : निदान
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प्राप्त हुआ । वह र द्वीप में अष्टान्हि
देव इन्द्र के सामने देखा तो पर प्रभाव को या तो हत
- अनंगसेन पर तो बस यक्षिणियों का जादू चढ़ा था उसने किसी की बात नहीं मानी और उन्हीं को प्राप्त करने का निदान कर वाल तप करने लगा। वहाँ से मरकर वह पंचशैल द्वीप में विद्युन्माली यक्ष बना । वह हासा प्रहासा के साथ भोग भोगने लगा।
इधर णाइल श्रावक भी संयम स्वीकार कर तप करता हुमा मृत्यु को प्राप्त हुआ। वह अच्युत कल्प में महान ऋद्धिशाली सामानिक देव बना।
एक बार नन्दीश्वर द्वीप में अष्टान्हिक महोत्सव मनाया जा रहा था। इन्द्र की आज्ञा से सभी देवों को अपना-अपना नियुक्त कार्य करना था ! विद्युन्माली देव को ढोल बजाने का कार्य सौंपा गया। वह ढोल बजाना नहीं चाहता था । आखिर इन्द्र के आदेश से जर्वदस्ती उसे वहां जाना पड़ा और ढोल बजाने लगा।
णाइल देव इन्द्र के साथ इस महोत्सव में आया था। उसने जब विद्युन्माली देव को ढोल बजाते देखा तो पूर्व जन्म का स्नेह उमड़ आया। वह उसके पास आया। विद्युन्माली उसके तेज व प्रभाव को सहन नहीं कर सका, वह पीछे-पीछे हटने लगा। णाइल देव और पास में आ गया। तो हतप्रभ हुआ विद्युन्माली ढोल वजाना भूल गया।
णाइलदेव ने पूछा-तुम मुझे पहचानते हो ? विद्युन्माली-महाराज ! मैं आपको कैसे जानू ! आप महान शक आदि कौन इन्द्र हैं ?
णाईलदेव-मैं तुम्हारा मित्र हूँ।"
विद्युन्माली-सकुचाता हुमा वोला-"नहीं ! नहीं ! आप महान हैं! मैं तो एक बहुत तुच्छ आतोद्यवादक हूँ।"
माईल देव-"मैं पूर्व जन्म की बात कह रहा हूँ, याद करो ! हम दोनों मिल थे।" फिर णाइल देव ने उसे पूर्व जन्म की घटना सुनाई-देखो, मैंने तुम्हें कहा था निदान करके तप मत करो, लालसा रहित होकर तप माचरण करो। तुमने नहीं माना इसलिए तुमने अपने तप को इसी भव