Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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जैनधर्म में तप
जलते हुए नाग को देखा और बचाया था। कुछ तपस्वी इन्द्रासन प्राप्त . करने की लालसा से, कुछ लब्धियां प्राप्त करने की अभिलापा से और कुछ - सम्यक् ज्ञान के अभाव में विना किसी कर्मनिर्जरा की भावना के यों ही . तप करते रहते हैं। इस तप में सम्यक्ज्ञान का अभाव होने से कष्ट तो. भले ही अधिक हो, किन्तु उसका फल बहुत ही कम होता है । अज्ञान तप से कर्म निर्जरा बहुत कम होती है । जैसे पत्थर ढोने वाला मजदूर सुवह से शाम तक दम तोड़ काम करता है, फिर भी मजदूरी क्या मिलती है ? एकदो रुपये ! और हीरे का व्यापार करने वाला तोला भर सामान लिये भी ... लाखों का वारा-न्यारा कर लेता है, वैसे ही सम्यग्ज्ञान पूर्वक तप करने वाला बहुत अल्प श्रम में अत्यधिक कर्मनिर्जरा रूप लाभ कमा लेता है। सम्यक् मानपूर्वक और उसके अभाव में तप करने वालों की तुलना करते हुए आचार्य ने बताया है
जं अपणाणी फम्म खवेदि भवसय-सहस्स फोडोहि । '
तं णाणी तिहिं गुत्तो, खवेदि उस्सासमेत्तण ।' अज्ञानी साधक लाखों करोड़ों जन्मों तक तप करके जितने कर्म खपाता है, सम्यक् ज्ञानी साधक, मन, वचन और काया को संयत रखकर सांस माय .. में ही उतने कर्म खपा देता है। ___अज्ञानी का एक और करोड़ों जन्मों का तप, तथा दूसरी और सम्यक् . जानी का सांस मात्र का तप, कितना महान् अंतर है ?
बाल तप क्या है ? जिस तप में सम्यक् ज्ञान का अभाव होता है, मुक्ति की दृष्टि से उस तप का कोई मूल्य नहीं है। इसी कारण उन तप को 'वाल तप' कहा जाता है। जैसे बालक की नियालों में, चेप्टाओं में कोई लक्ष्य नहीं होता, कोई विशिष्ट ध्येय नहीं होता, वे प्रायः कुतूहलप्रधान या उद्देश्य शून्य-सी होती है। इसी कारण किसी व्ययं चेष्टा को, या लक्ष्यहीन प्रयत्न को 'बालचेप्टा' पाहा
१ प्रवचनसार ३३८