Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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जैन धर्म में तप.
निकाल कर पचास हजार गायों को पिलाया जाता है । पचास हजार गायों .. का दूध पच्चीस हजार को। और इसी क्रम से करते करते दो गायों का दूध एक गाय को पिलाया जाता है । उस गाय का दूध जितना मधुर, स्वादिष्ट और शरीर को सुख प्रीति देने वाला होता है उसी प्रकार क्षीराश्रवलब्धि के प्रभाव से वक्ता का वचन भी उस दूध की भांति मधुर और सुख-प्रीति उत्पन्न करने वाला होता है।
दूध की तरह ही जिसका वचन सुनने में श्रेष्ठ, मधु के समान मोठा लगता हो, वह मध्वाधव लब्धि का प्रभाव समझना चाहिए और उन पुण्डे क्षु . चरने वाली गायों के घी के समान जिसका वचन तृप्ति कारक लगता हो .. वह सपिराश्रवलब्धि का प्रभाव ।
उक्त लन्धि का एक प्रभाव यह भी होता है कि उनके भिक्षापात्र में दूखा-सूखा-नीरस आहार भी आ जाता है तो वह स्वतः ही क्षीर, मधु एवं ..। घृत के समान स्वादिष्ट बन जाता है ।-येषां पात्र पतितं कदन्नमपि क्षीर- . मधुसपिरादि सवीर्य विपाकं जायते-और यह अन्न खाने पर भी उतना ही स्वादिष्ट और प्रीतिकारक लगता है।
कहीं-कहीं लोग मांत्रिक प्रयोगों से भी वस्तु का स्वाद बदल देते हैं । मिसरी का मिट्टी जैसा स्वाद बना देते हैं और मिट्टी को मिश्री जैसा मधुर ! किन्तु यह एक मांत्रिक प्रयोग है। किन्तु लब्धिधारी का तो यह
ग्रन्थों में भी प्रसिद्ध है । सुजाता युद्ध की उपासिका थी। वह एक हजार गायों का दूध पांच सौ गायों को पिलाती, पांच सौ गायों का ढाई सौ को, इसी क्रम से सोलह गायों का दूध आठ गायों को आठ का चार को, चार का दो गायों को दूध पिलाकर उसके दूध की खीर बनाती है । उस खीर की भिक्षा वह बुद्ध को देती
___~-आगम और त्रिपिटक पृ० १७० १ नोट :-इनी दूध से चमावर्ती की खीर बनती है जिसे 'कल्याणका
. भोजन' कहते हैं।