Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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. जैन धर्म में तप की भूमि मांगी थी । वचन मिलने पर एक लाख योजन का विराट रूप बनाकर एक चरण जगती के इस छोर पर व दूसरा उस छोर पर रखा तथा तीसरे चरण को रखने की भूमि न देने पाने पर उसकी छाती पर रखकर उसे समाप्त कर डाला था । यह वैक्रिय देह लब्धि का ही चमत्कार था।
इस लब्धि के प्रभाव से एक साथ सैकड़ों हजारों रूप भी बनाये जा सकते हैं, जिधर देखो उधर वही रूप दिखाई देगा। एक साथ सैकड़ों घरों में घूमा जा सकता है, सैकड़ों जगह एक साथ भोजन आदि का उपभोग किया जा सकता है। ___अंबड परिव्राजक वैक्रिय लब्धि से सैकड़ों रूप बना कर लोगों को चमत्कार दिखाया करता था। उववाई सूत्र में प्रमंग है कि एक बार भगवान महावीर कंपिलपुर में पधारे । वहां पर अंबड परिव्राजक का बड़ा ही प्रभाव . था । लोग कहते-अंबड परिव्राजक बड़ा सिद्ध पुरुप है । वह एक साथ सौ .. घरों में भोजन कर सकता है, सौ घरों में एक साथ दर्शन दे सकता है। लोगों के मुंह से गणधर इन्द्रभूति ने यह चर्चा सुनी तो उन्होंने भगवान से पूछा-प्रभो ! क्या यह बात सत्य है ? उत्तर में भगवान ने कहा-'हां, अंबड परिव्राजक ऐसा कर सकता है।' गौतम ने पुनः आश्चर्य के साथ पूछा-- वह यों कैसे कर सकता है ? भगवान ने बताया--अंबड परिव्राजक ने दीर्घ काल तक बेले-बेले की कठोर तपश्चर्या की, सूर्य के सामने हाथ ऊपर उठाकर मातापना ली और इस तपःसाधना के कारण उसे वैशियलब्धि, वीर्यलब्धि तथा अवधिज्ञानलब्धि की प्राप्ति हुई, उसी लब्धि के बल पर वह ऐसा कर सकता है।
सुलसा की परीक्षा करने के लिए भी अंबड ने अनेक रूप बनाए । और उसकी दृढ़ धार्मिकता की परीक्षा ली । यह सब चमत्कार
१ यह लाख योजनउत्सेधा गुल से किया था, अतः सिन्हांगुल से वह
सो योजन ही माना जाता है, मनुष्य उत्कृष्ट बैक्रिय सी योजन का ही कर सकता है। २ उपवाई सूत्र ३ आवश्यक चूर्णि, उत्तरार्ध पत्र १६४.