Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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जैन धर्म में तप
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देते थे । यश, प्रतिष्ठा, कीर्ति, प्रभाव जमाने की भूख को वे दल दल कहकर पुकारते थे, और स्वयं इस दल-दल से दूर थे, अपने शिष्यों को भी इस दल-दल से बचते रहने की ही शिक्षा दिया करते थे ।
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भगवान महावीर के समान गौतम बुद्ध भी लब्धि प्रयोग प्रदर्शन को साधक के लिए त्याज्य मानते थे । उनके संघ में गल्यायन महान् लव्धिघारी ऋद्धिवली माना अपने ऋद्धिवल का प्रदर्शन किया करता था, ऋद्धिवल के प्रदर्शन की असारता बताते रहते ।
जाता था ।
किन्तु वुद्ध
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एक बार का प्रसंग है कि एक राजा ने एक बहुमूल्य चन्दन का रत्न जटित कटोरा ऊँचे खंभे पर टांग दिया और उसके नीचे लिख दिया -- "जो कोई साधक, सिद्धयोगी इस कटोरे को बिना किसी सोढ़ी आदि के एक मात्र अपनी यौगिकशक्ति से उतार लेगा में उसकी सारी इच्छाएँ पूर्ण करूंगा ।"
बहुत से लोग वहां इकट्ठे हो रहे थे तभी भिक्षु काश्यप वहां पहुंचा, उसने केवल उधर हाथ बढ़ाया और कटोरा उतार लिया। सभी दर्शक व पहरेदार चकित होकर भिक्षु को देखते रहे । भिक्ष कटोरा लेकर बुद्ध विहार की ओर चला गया । लोगों की भीड़ बुद्ध के पास पहुंची और उनकी तथा उनके शिष्य काश्यप के चमत्कारों की प्रशंसा करने लगी ।
व चमत्कार
बुद्ध सीधे काश्यप के पास पहुंचे, उस रत्नजटित कटोरे को लेकर उन्होंने तोड़ डाला और वोले- मैं तुम लोगों को चमत्कारों के प्रदर्शन का बार-बार निषेध करता हूं, यदि तुम लोगों को चमत्कारों का प्रदर्शन ही इष्ट है तो सचमुच तुमने धर्म को समझा ही नहीं है । कल्याण चाहने वाला भिक्षु चमत्कार से बचकर सदाचार का अभ्यास करें 12
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भिक्षु मोद्
वह कई वारं वारवार उसें
इससे पता चलता है कि आत्मसाधना के पथ में चमत्कारों व लब्धि
प्रयोगों को सभी अध्यात्मवादियों ने त्याज्य माना है ।
१ संयुक्त निकाय महावग्ग रिद्विपाद
२] CARV'S GOSPEL OF BUDDHA.
-pp99-101