Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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को शक्ति में और मिता है, किंतु वह जन्म से भी आकाश
जा सकता है या के वश होती हाती बनेगी । जैसे कारण लति है । कितनी है. अधिक होती जाती होगा, वह उतनी ही तन से अधिक शािव में मानुषोत्ता बरखाप पहुंचता
प और लब्धियां
ওও रहती है और इसमें ज्ञान की । तप के साथ विद्याभ्यास करने से इस लब्धि की प्राप्ति होती है। किंतु है यह भी तपोजन्य । विद्याधरों की आकाशगामिनीशक्ति में और विद्याचारणलब्धि में अंतर है। विद्याधरों को भी यद्यपि विद्याभ्यास करना पड़ता है, किंतु वह जन्मगत एवं जातिगत संस्कार रूप में भी प्राप्त होती है । कुछ योगी मंत्र शक्ति से भी आकाश में उड़ान भरते हैं। किंतु विद्याचारण लव्धि वाला मंत्र-तंत्र व जन्मगत कारण से नहीं, किंतु तप के साथ विद्याभ्यास के कारण ही आकाशगमन कर सकता है।
विद्याचारण वाला तिरछे लोक में आठवें नंदीश्वर द्वीप तक उड़कर जा सकता है । विद्याचारण की शक्ति प्रारंभ में कम व वाद में अधिक होती है । चूंकि यह विद्या के वश होती है,विद्या का जितनी बार परिशीलन अधिक होगा वह उतनी है. अधिक शक्तिशाली बनेगी । जैसे भांग को जितनी घोटी जाती है, वह उतनी ही तेज होती जाती है, विद्याचारण लब्धि भी इसी प्रकार पुनः पुनः परिशीलन से अधिक शक्तिशाली बनती है । इसी कारण विद्याचारण को नंदीश्वर द्वीप जाते समय बीच में मानुपोत्तर पर्वत पर एक विश्राम लेना पड़ता है, और दूसरी उड़ान भरकर वह नंदीश्वरद्वीप पहुंचता है किंतु लौटते समय परिशीलन से उसकी विद्या शक्ति प्रखर हो जाती है अतः एक ही उड़ान में सीधा अपने स्थान पर आ जाता है। इसी प्रकार ऊँची उड़ान भरते समय भी जाते समय पहले नंदनवन में विश्राम लेकर फिर दूसरी उड़ान में पाण्डुकवन पहुँचा जाता है, किंतु लौटते समय में सीधे ही एक उड़ान में अपने स्थान पर आ जाते हैं। ___जंघाचारण से विद्याचारण की शक्ति कम होती है । ग्रंथों में बताया गया है कि जंघाचारणलब्धि वाला तीन बार आँख की पलक झपकने जितने समय में एक लाख योजन वाले जंबूद्वीप के २१ चक्कर लगा सकता है, किंतु विद्याचारण लब्धि वाले इतने समय में सिर्फ ३ चक्कर ही लगा पाते हैं । गति की तीव्रता जंघाचारण में अधिक है। आज के जैट विमान, फ्रांस के मिराज विमान जो कि शब्द की गति से भी अधिक तेज दौड़ सकते हैं, और जन्यान, जो मिनटों में हजारों मील के चक्कर काट लेते हैं, अभी भी