Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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तप की महिमा
वैविक ग्रन्थों में तप की गरिमा वेदो एव उपनिषदो मे स्थान-स्थान पर तप की महिमा गाई गई है और बडे ही मुक्त मन से, श्रद्धा भरे हृदय से ! कुछ सूत्र देखिए
तपो में प्रतिष्ठा तप ही मेरी प्रतिष्ठा है। श्रेष्ठो ह वेदस्तपसो ऽधिजात २ श्रेष्ठ और परम ज्ञान तप के द्वारा ही प्रकट हो जाता है।
यो ऽसौ तपति स वै शसति' जो तपता है, अपने कर्तव्य मे जुटा रहता है, वह ससार मे सर्वत्र यश कीर्ति प्राप्त करता है।
सपो वाऽग्नि स्तपो वा दीक्षा तप एक अग्नि है, तप एक दीक्षा है।
___ श्रमेण लोकास्तपसा पिपति श्रम ( सयम-~-इन्द्रिय निग्रह ) एव तप के द्वारा ससार की रक्षा की जाती है।
ब्रह्मचर्येण तपसा देवा मृत्युमुपाघ्नतम् ।। ब्रह्मचर्य एव तप के द्वारा देवताओ ने मृत्यु को जीत लिया, अर्थात तप से ही वे अमर बन सके।
सामवेद मे बताया है-सरलात्मा देवताओ ने धूर्त एव दुष्ट राक्षसो को कैसे जीता ? तो कहा कि अपने तपस् के द्वारा
१ तैत्तिरीय ब्राह्मण ३१७१७० २ गोपथ ब्राह्मण १।११६ ३ गोपथ ब्राह्मण २।५।१४ ४ शतपथ ब्राह्मण ३।४।३।३ ५ अथर्ववेद ११३५१४ ६ अथर्ववेद १११५३१६