Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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जैनधर्म के तप का महत्व
खंड से लाने के लिए जाते-आते समय समुद्र को पार करने के लिए तेला करके देवता को बुलाते हैं और उनका सहयोग मांगते हैं। माता देवकी की पुत्र को रमाने की इच्छा पूरी करने के लिए तेला करके देवता को प्रसन्न करते हैं और एक भाई की याचना करते हैं, जिसके फलस्वरूप गजसुकुमाल का जन्म होता है । तो इस प्रकार प्रत्येक कठिन कार्य की सिद्धि के लिए तप का सहारा लिया जाता रहा है । हर दुःस्साध्य कार्य को तप के द्वारा सुसाध्य बनाया जाता रहा है । हर एक दुष्कर और मानव के लिए असंभव लगने वाले कार्य को तप के द्वारा सुकर और सम्भव बनाया जा सकता है।
____ तपस्वी को देवता भी चाहते हैं तपस्या के द्वारा आत्मा की सुप्त शक्तियाँ जागत होती हैं, दिव्य वल .. प्रकट होता है और आत्मा एक प्रचंड शक्तिस्रोत के रूप में व्यक्त होता है । तपस्वी का तपोवल इतना प्रखर होता है कि मानव ही क्या, देवता
और इन्द्र भी उसके चरणों में झुकते हैं, उसको चाहते हैं, और उसकी शक्तियों से भय खाते हैं। वैदिक पुराणों में बहुत सी कथाएं ऐसी आती हैं जिनमें बताया गया है कि अमुक तपस्वी के तपोबल से इन्द्र महाराज का सिंहासन कांप उठा । इन्द्र भय खाने लगा कि कहीं मेरा राज्य यह तपस्वी छीन न ले । जैनशास्त्र भगवती सूत्र में वर्णन आता है कि एक बार असुरों की राजधानी बलिचंचा नगरी का इन्द्र आयु पूर्ण कर गया। दूसरा कोई इन्द्र वहां उत्पन्न नहीं हुआ। अब असुर घवराये-हम अनाथ-स्वामी रहित हो गये ? क्या करें ? नये स्वामी को कैसे कहाँ से प्राप्त करें जो शत्रुओं से हमारे राज्य की रक्षा कर सके ! ऐसा तेजस्वी स्वामी कहाँ से लाए ? इसी चिता में उलझे हुए असुरकुमारों की दृष्टि पड़ी एक घोर वाल तपस्वी पर ! वह बाल तपस्वी था तामली तापस । तामली तापस घोर तपश्चर्या कर रहा था, साठ हजार वर्ष तक वह लगातार बेले-बेले तप करता और पारणे में इक्कीस बार धोया हुआ चावल का सत्वहीन पानी लेता। इस कठोर तप से उसका. शरीर अत्यंत जर्जर हो गया, किन्तु तपस्तेज अत्यंत प्रचण्ड होकर दमक रहा था । असुरकुमारों ने तामली तापस को देखा तो सोचा-"यह