Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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तप और लब्धियां यह भी एक प्रकार की मानसिक शक्ति है । किन्तु मानसिक शक्ति का बहुत ही छोटा सा तुच्छ रूप है ।
'अण' से आत्मा की शक्ति महान है आज अणु की शक्ति से संसार चकित है, किंतु जब अत्मा की शक्ति का पता चलेगा तो अनुभव होगा कि अणु से भी अनन्त गुनी शक्तियाँ आत्मा में हैं । आत्मा अक्षय अनन्तशक्तियों का पिंड है। हमारे में जो चेतना है, मनो बल है, चिंतन करने की क्षमता है, भविष्य की बातों का कभी कभी पूर्वाभास हो जाता है; अतीत की हजारों स्मृतियां मस्तिष्क में चक्कर काटती हैं, बहुत से लोगों को मृत्यु से पूर्व ही अपनी अंतिम यात्रा का ज्ञान हो जाता है ये सब क्या भौतिक शक्तियां हैं ? नहीं ! आत्मा की ही कुछ विकसित शक्तियाँ हैं और इनके अनुभव से हमें विश्वास होता है कि यदि इन शक्तियों का विकास किया जाय तो ये ही शक्तियां अदभुत चमत्कार दिखा सकती हैं।
लब्धि क्या है ? चमत्कार को संसार नमस्कार करता है, किंतु चमत्कार पैदा कौन कर सकता है ? जिसमें आत्मबल होगा ! जिसके पास साधना होगी ! यंत्र
और तंत्र की शक्तियां भौतिक होती हैं, किंतु साधना, तपस्या से प्राप्त शक्ति आध्यात्मिक होती है। भौतिक शक्ति 'जादू' कहलाती है, आध्यात्मिक शक्ति 'सिद्धि' । आज भी अनेक लोग तांत्रिक प्रयोग करते हैं, देवी की उपासना से कुछ चमत्कार भी दिखाते हैं, भैरव, भवानी, काली आदि की उपासना कर कुछ चमत्कृत करने वाले करिश्में भी दिखाते हैं, किंतु वास्तव में इन प्रयोगों को सिद्धि नहीं कहा जा सकता । सिद्धि तो वह है, जो शुद्ध आध्यात्मिक हो, कर्म आवरणों का क्षय होने पर स्वतः आत्मा से ही जो शक्ति प्रकट होती है उसे 'लन्धि' या 'सिद्धि' कहा जाता है।
लब्धि का अर्थ है-'लाभ' ! प्राप्ति ! तपस्या आदि के द्वारा जव कर्मों का क्षय होता है तो आत्मा को उतने रूप में विशुद्धि व उज्ज्वलता प्राप्त होती है। आत्मा के गुण व शक्तियां, जो कर्मों के कारण ढंकी हुई थी, छिपी हुई थी, वे कर्मावरणों के हटने से प्रकट हो जाती हैं । जैसे आकाश में सूर्य पर बादल आ जाते हैं तो उसका तेज, प्रकाश धुंधला पड़ जाता है
है ? जिसमें आपातक होती हैं, फिजादू कहलाती है,