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प्रस्तुत कृति उनके वात्सल्यमय अनुग्रह का परिणाम है।
मेरे अभिन्न मुनिप्रवर सर्वश्री वैराग्यसागरजी, श्रीविवेकसागरजी, श्रीऋषभसागरजी, श्रीवर्धमानसागरजी एवं श्रीविराटसागरजी म.सा. मेरी लक्ष्यपूर्ति में सदैव सहभागी रहे हैं । प्रस्तुत सृजन में उनका आत्मीय सहकार मेटर - कलेक्शन, लेखन - कार्य, प्रूफ रीडिंग आदि में उपलब्ध हुआ है, जो सदैव स्मरणीय है। उनके प्रति आभार - ज्ञापन कर मैं अपनी आत्मीयता एवं अभिन्नता पर प्रश्नचिह्न नहीं लगाते हुए केवल इतना कहना चाहूँगा कि उनकी निःस्पृह सेवाओं के बिना यह बृहद्कार्य सम्पन्न कर पाना सम्भव नहीं था ।
इस पुनीत अवसर पर मैं विश्व प्रेम प्रचारिका, समन्वयसाधिका, जैन- कोकिला स्व. प्रवर्तिनी श्रीविचक्षणश्रीजी म.सा. का शुभ स्मरण करना चाहूँगा, जिनकी अदृश्य कृपा मेरी साधना के विकास में सदैव आधारभूत रही है, साथ ही उनकी सुशिष्या मम संयम - उपकारिणी, मातृहृदया, मरुधरज्योति श्रीमणिप्रभाश्रीजी म.सा. का उल्लेख करना चाहूँगा, जिनकी पावन प्रभा से आलोकित होकर मुझे अपनी संयम - यात्रा एवं अध्ययन - यात्रा में अग्रसर होने की राह मिलती रही ।
प्रस्तुत शोधकार्य का अथ से इति तक सम्पूर्ण श्रेय जैनधर्मदर्शन के मूर्धन्य विद्वान् डॉ. सागरमल जैन सा. को जाता है, जो स्वयं ज्ञान के सागर हैं, आगम-मर्मज्ञ हैं, दार्शनिक क्षेत्र के अग्रणी विद्वानों में से एक हैं और सरलता एवं सहजता से युक्त एक पूर्ण व्यक्तित्व हैं। इनकी प्रेरणा एवं प्रोत्साहन से ही शोधकार्य करने का आत्मविश्वास मिला और इनके मार्गदर्शन में ही शोधकार्य को गति प्राप्त हुई। आपने विषयवस्तु को प्रासंगिक एवं प्रामाणिक बनाने हेतु पांडुलिपि का अतिसूक्ष्म निरीक्षण, समीक्षण एवं संशोधन किया, ताकि यह शोध - ग्रंथ जनभोग्य बन सके ।
सहयोग की श्रृंखला में श्रीरामकृष्ण काबरा, इन्दौर का उल्लेख करना भी आवश्यक होगा, जो सांसारिक जीवन में पूज्य गुरूदेवश्री के अभिन्न मित्र रहे । आप एम. इ. (इलेक्ट्रिकल) एवं एम.बी.ए. की उच्च शिक्षा प्राप्त कर मध्यप्रदेश विद्युत्-मंडल में कार्यरत रहे और नीतिमय जीवन जीकर मुख्य अभियंता के पद से सेवानिवृत्त हुए। आपने इस शोध-ग्रंथ का आद्योपांत अध्ययन कर इसके आलेखन को सरल, सुगम एवं सुव्यवस्थित बनाने में अहोरात्र परिश्रमपूर्वक अपना विशिष्ट एवं चिरस्मरणीय योगदान दिया ।
प्रस्तुत शोधकार्य में प्राच्य एवं आधुनिक दोनों शिक्षाओं का समन्वय करना एक आवश्यक कर्तव्य था, जिससे यह वर्त्तमान परिवेश में भी सहजता से उपयोगी बन सके। इस हेतु शिक्षा जगत् के अनेक सुप्रसिद्ध एवं अपने-अपने विषयों में पारंगत विद्वानों ने भी अमूल्य समय देकर मुझे विषय के मर्म तक पहुँचने हेतु उचित मार्गदर्शन प्रदान किया। ये सहयोगी शुभचिन्तक अनेक हैं, जिनमें श्री ज्योति कोठारी (जयपुर), प्रो. वीरेन्द्र नाहर, प्रो. जयन्तीलाल भण्डारी, प्रो. निलोसे, प्रो. अनुपम जैन, डॉ. मनोहर भण्डारी, डॉ. अजय शर्मा, डॉ. दिनेश राँका, प्रो. सरोज कोठारी, श्री कैलाश शर्मा, डॉ. डी. कौल, प्रो. अशोक जैन, प्रो. सुनीता कवीश्वर (सभी इन्दौर), प्रो. बी. एल. जैन (रतलाम), प्रो. पी. सी. करोड़े
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