Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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२६ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : प्रथम अध्याय वस्तु न लाई लाय. यह दुष्काल सं० १९८६ में पड़ा था. उस समय मारवाड़ के अधिकांश लोगों ने "पग-पग रोटी डग-डग नीर" वाले हरे-भरे मालव प्रदेश में जाकर आश्रय ग्रहण किया था. घटना : १९५६ मेड़ता.
सात:
'सक्खं खु दीसइ तबोविसेसो, न दोसई जाइविसेस कोइ'
जातिगत उच्चता-नीचता की दीवारों में धर्म को कैद करने वालों के सामने धर्म की उदारता प्रतिपादित करते हुये श्रमण भगवान् महावीर ने अपनी देशना में कहा है---"संसार में तप एवं नैतिक आचार की विशेषता प्रत्यक्ष ही दृष्टिगोचर होती है. जाति से उच्चता-नीचता को स्वीकार करना धर्म, नीति, सदाचार और संयम का अपमान है." इस कल्पना में जाति सद्गुणों से ऊपर उठ कर दंभ का कारण बनती है. यही कारण है कि भगवान् महावीर ने संभवत: सर्व-प्रथम जातिवाद के विरुद्ध शंखनाद किया था. हरिजन-मन्दिर-प्रवेश का आन्दोलन देशव्यापी था. सं० २०१४ का वर्षावास स्वामीजी सिंहपोल, जोधपुर में बिता रहे थे. दो हरिजन बंधू सिंहपोल में स्वामीजी के पास, इस इरादे से आये कि “मंदिर-प्रवेश के लिए हमें बरजा जाता है. यहां भी हमें रोका-टोका जायगा ! हम जबरदस्ती करेंगे. तर्क करेंगे हमें अधिकार क्यों नहीं ?" कक्ष के बाहर तक आकर उनके पैर ठिठके. मुनिराज ने हाथ से अन्दर आने का स्नेहपूर्वक संकेत किया. उन्होंने कहा : 'स्वामीजी ! हम जैन धर्म में श्रद्धा रखते हैं, इस नाते हम जैन हैं !' बहुत सुन्दर ! तब हम-तुम सहधार्मिक हुए. स्वामीजी का नपा-तुला उत्तर था. आगत बन्धुओं का संघर्षमूलक मनोरथ पिघल कर बह गया. स्वामीजी ने उन्हें धार्मिक पुस्तकें प्रदान की ! जाते समय उनके नमस्कार के उत्तर में पुनः आशीर्वादात्मक हस्त-मुद्रा की. घटना : सं० २०१४. जोधपुर.
पाठ:
एक कन्दरा में दो सिंह कैसे रह सकते हैं ? मारवाड़ के अल्हड़ सन्त श्रीपूर्णमलजी म०, बाबाजी के नाम से प्रसिद्ध थे. एक बार वे तिवरी में विराजमान थे. तिवरी ग्राम में स्वामी के भक्त श्रावक अधिक संख्या में निवास करते हैं. अतएव उनका पदार्पण होने पर स्वाभाविक ही था कि श्रोता प्रवचन में अधिक संख्या में सम्मिलित होते. मगर स्वामीजी तो सरलता, उदारता और समता की प्रतिमूर्ति थे ! वे बाबाजी की साधना और योग्यता से भी परिचित थे. अतः उनकी उपेक्षा को सहन नहीं कर सकते थे. स्वामीजी, वर्षावास निमित्त वर्षावास प्रारंभ होने के काफी दिन पहले विचरते हुए तिवरी पधारे थे. स्वामीजी ने तिवरी-निवासियों को बाबाजी के प्रति अधिकाधिक आदर-भाव व्यक्त करने की दृष्टि से अपनी सहज उदारतावश आदेश दिया-'बाबाजी जब तक तिवरी में हैं, उन्हीं का व्याख्यान होगा. और आप सबको उनके व्याख्यान में जाना है.' उनकी उदारता ने कहा : एक गुफा में दो सिंह नहीं रह सकते परन्तु एक क्षेत्र में समभाव के साधक अनेक सन्त रह सकते हैं. क्योंकि उन का लक्ष्य एक है. बाबाजी म० जब तक वहाँ रहे, दोनोंका बड़ा स्नेहपूर्ण व्यवहार रहा. स्वामीजी ने क्षण भर के लिये भी बाबाजी को अनुभव नहीं होने दिया कि वे अपने भक्तों के मध्य में नहीं हैं.
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