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तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थयरे सहसंबुद्ध परिसुत्तमे पुरिससीहे पुरिसवर पुंडरीए पुरिसवर गंधहत्थी लोगुत्तमे लोगणाहे लोगहिए लोगपईवे लोगपज्जोयगरे अभयदए चक्खुदए मग्गदए सरणदए बोहिदए धम्मदए धम्मदेसए धम्मणायगे धम्मसारही धम्मवरचउरंत चक्कवट्टी अप्पडिहयवरणाणदंसणधरे वियदृछउमे जिणे जाणए बुद्ध बोहए गुत्ते मोयए सव्वण्णू सव्वदरिसी सिवमयलमरुगणंतमक्खयमव्वा बाहमप्पुणरावित्तियं सिद्धिगइनामधेयं ठाणं ।
-भगवती सूत्र सिद्धत्थराय पियेकारिणीहि कुंडले वीरे। उत्तर फाग्गुणि रिक्खे चित्तप्सिया तेरसीए उप्पण्णो ॥
-यतिवृषभाचार्य वासाणूणत्तीसं पंचयमासे य वीस दिवसे य, चउविह अणगारेहिं बारहहि गणेहि विहरतो । पच्छा पावाणयरे कत्तियमासे य किण्ह चोद्दसिए, सादीए रत्तीए सेसरयं छेत्तुंणिव्वाओ ॥ अमावसीए परिणिव्वाण पूजा सयल देविदेहि कयाति ॥
-जयधवल
उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर स्वामी वहां पधारे। वे भगवान कैसे थे? इसके लिए कहा है कि वे आदिकर, तीर्थकर, स्वयं संबुद्ध, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुरुषवर, पुण्डरीक, पुरुषवर गन्धहस्ती, लोकोत्तम, लोकनाथ, लोकहितकर, लोकप्रदीप, लोकप्रद्योतकर अभयदाता, चक्षुदाता, मार्गदाता, शरणदाता, बोधिदाता, धर्मदाता, धर्मोपदेशक, धर्मनायक, धर्मसारथि, धर्मवर-चातुरन्तचक्रवर्ती, अप्रतिहत ज्ञान-दर्शन के धारक, छद्मस्थता से निवृत्त जिन, ज्ञायक, बुद्ध, बोधक, मुक्त, मोचक, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी थे । वे शिव, अचल, रोग रहित, अनन्त, अक्षय, अव्याबाध, पुनरागमन रहित, सिद्ध गति को प्राप्त करने की इच्छा वाले थे। कुण्डलपुर में महाराज सिर्द्धार्थ और महारानी प्रियकारिणी त्रिशला के घर चैत्र शुक्ल त्रयोदशी के शुभ दिन उत्तरा फाल्गुणि नक्षत्र में उन वीर प्रभु का जन्म हुआ। और (केवल ज्ञान के उपरान्त) उन्तीस वर्ष पांच मास तथा बीस दिन तक बारह गणों में संगठित चतुर्विध संघ के साथ विहार करते हुए अन्त में पावानगरी में कात्तिक मास की कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि के अन्तिम भाग में स्वाति नक्षत्र के रहते शेष (अघातिया) कर्मों का छेदन करके निर्वाण प्राप्त किया। उस उपलक्ष्य में अमावस्या के दिन समस्त देवेन्द्रों ने मिलकर परिनिर्वाण पूजा की।
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