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महावीर का धर्म-जनधर्म
-श्री रिषमदास रांका
भगवान महावीर न तो जैनियों के प्रथम तीर्थंकर थे और नहीं अन्तिम । उनके पहले अनेक तीर्थकर हो गए। इसी युग में भगवान महावीर के पहले २३ हुए और २४वें वह स्वयंथे । भविष्य में भी अनेक तीर्थकर होंगे, उन्होंने यह भी कहा था। उन्होंने कहा था कि मैं जो धर्म कह रहा हूँ वह नित्य है, ध्रुव है और शाश्वत है। मेरे पहले भी अनेक तीर्थंकरों ने इसे कहा था और भविष्य में भी कहेंगे। उन्होंने कहा था कि सभी जीव सुख से जीना चाहते हैं, दुःख सभी को अप्रिय है, मरना भी कोई नहीं चाहता इसलिए यदि सुख से रहना चाहते हो तो जिस तरह के व्यवहार की दूसरों से अपेक्षा रखते हो वैसा ही व्यवहार दूसरों के साथ करो। उन्होंने दुःख का प्रारम्भ दूसरों के साथ परायेपन के व्यवहार को कहा था। उन्होंने सब जीवों के साथ समता के व्यवहार को सुखकर बताया था क्योंकि सभी प्राणियों में आत्मा से परमात्मा, नर से नारायण तथा जीव से शिव बनने की क्षमता है। हर जीव अपने भाग्य का विधाता है, सुख-दुःख का कर्ता है। उनकी समता का आधार गहरा था। उनका वचन दीर्घकाल की साधना का परिणाम था। वे पूर्णतया अनुभवपूर्ण थे। इसी कारण उनके पीछे यह आत्मविश्वास था कि मैं जो कह रहा हूँ वह नित्य है, ध्रुव है और शाश्वत है। उन्होंने कभी नहीं कहा कि तुम मेरी शरण में आओ, मेरी भक्ति करो, मैं तुम्हारा उद्धार कर दूंगा। बल्कि उनका यही उपदेश था कि तुम्हीं अपना उद्धार कर सकते हो, तुम्ही तुम्हारे मिन हो और तुम्ही तुम्हारे शत्रु । जीव मान के प्रति आदर, यह उनका चिन्तन था।
महावीर क्षत्रिय थे। उनका जन्म नाम वर्द्धमान था। महावीर शब्द उनकी वीरता का परिचायक मात्र । वह शवओं को जीतता है पर अपने आपको जीतने वाला-अपने दुर्गणों-कषायों-अहंताओं-ममताओं को जीतने वाला महावीर होता है। ऐसे महावीर की परम्परा वीरत्व की परम्परा है--कायरों की नहीं। तभी महात्मा गाँधी ने भी कहा है कि--"अहिंसा वीरों का धर्म है , कायरों का नहीं।"
जैनधर्म नहीं, जनधर्म-महावीर का धर्म उनके समय में निर्ग्रन्थधर्म कहलाता था। किसी प्रकार की ग्रंथी नहीं--ग्रंथीहीन । मूर्छाओं, अशक्तियों और परिगृहों से दूर, जिसमें किसी प्रकार का आग्रह नहीं, जो सबका धर्म था अर्थात जन-धर्म, सबके लिए। वह स्त्री का भी उद्धार कर सकता था, पुरुष का भी, गृहस्थ का भी, गृहत्यागी का भी, धनवान, का भी और निर्धन का भी, ब्राह्मण का भी, चाण्डाल का भी, नगरवासी का भी, वनवासी का भी। जिसने समता अपनाई फिर वह कोई भी क्यों न हो, अपना उद्धार कर सकता है।
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