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काम्पिल्य
१३वें तीर्थंकर, वराहलांछन विमलनाथ के गर्भ एवं जन्म की पवित्र भूमि और प्राचीन दक्षिण-पांचाल जनपद की राजधानी, महानगरी काम्पिल्य की पहचान प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले की कायमगंज तहसील में, कायमगंज रेलवे स्टेशन से लगभग ८ कि. मी. की दूरी पर, पक्की सड़क के किनारे स्थित वर्तमान कपिल नामक गांव से की जाती है। गंगा की एक पुरानी धारा गांव के पास से बहती थी। जैन अनुश्रुतियों के अनुसार काम्पिल्य या कंपिला भी भारत की अत्यन्त प्राचीन नगरियों में से है । भगवान ऋषभदेव का विहार यहां हुआ था, तथा जब ऋषभपुत्र बाहुबलि ने मुनिदीक्षा ली थी तो उन्हीं के साथ उनके सहचर काम्पिल्य के राजकुमार ने भी दीक्षा ले ली थी।
इसी महानगरी में भगवान ऋषभदेव के वंशज महाराज कृतवर्मा की महादेवी जयश्यामा ने माघ शुक्ल चतर्थी के दिन तीर्थकर विमलनाथ (विमलवाहन) को जन्म दिया था। राज्यभोग के उपरान्त उन्होंने नगर के निकटवर्ती वन में जाकर दीक्षा ली, तप किया, केवलज्ञान प्राप्त किया और तदनन्तर अपने उपदेश द्वारा लोक कल्याण किया।
कालान्तर में इसी नगर में हरिषेण नाम का चक्रवर्ती सम्रटि हुआ, जिसकी जननी भी परम जिनभक्त आदर्श श्रविका थी। महाभारत काल में पांचाल अरेश द्रुपद इस नगर का राजा था-कहीं-कहीं द्रुपद की राजधानी का नाम माकंदी लिखा है, संभव है कि यह कम्पिला का ही अपर नाम रहा हो। द्रुपददुहिता द्रौपदी हस्तिनापुर के करुवंशी पंचपांडवों की पत्नी थी, उसकी गणना आदर्श सतियों में की जाती है। भगवान पार्श्वनाथ और महावीर का आगमन भी कम्पिला में हुआ था। एक अनुश्रुति के अनुसार ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती भी इसी नगर में हुआ था । जैन पराणों एवं कथाग्रन्थों में कम्पिला के धर्मवीरों, धनकुबेरों एवं मनीषियों के अनेक प्रसंग मिलते हैं।
वर्तमान में यहाँ एक पर्याप्त प्राचीन दिगम्बर जैन मंदिर विद्यमान है जिसमें श्यामल मंगिया पाषाण की पुरुषाकार पद्मासनस्थ प्रतिमा भगवान विमलनाथ की मूलनायक के पद पर विराजमान है। यह प्रतिमा लगभग सत्तरह-अठारह सौ वर्ष प्राचीन अनुमान की जाती है और जमीन में दबी पड़ी थी जहाँ से संयोग से उसका उद्घाटन इक्षा । प्रतिमा बडी मनोज्ञ एवं अतिशयपूर्ण हैं। आसपास के खंडहरों, गंगा के खादर व टीलों आदि से अन्य भी कई खंडित-अखंडित जिनप्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं। मंदिर में और भी कई मनोज्ञ प्रतिमाएँ हैं । एक अच्छी धर्मशाला भी है। तीर्थ का प्रबन्ध एक तीर्थक्षेत्र कमेटी करती है। यहाँ द्रुपदटीले के निकट एक पुराना श्वेताम्बर मंदिर भी वर्णनीय है। मध्यकाल में भी अनेक जैन तीर्थ यात्री कम्पिला जी के दर्शनार्थ आते रहे, और इसी कारण इस प्राचीन महानगरी की स्थिति, स्मृति आदि सुरक्षित रही आयी । इस क्षेत्र पर प्रतिवर्ष चैत्रवदि १५ से चैत्रसुदी ४ तक, पांच दिन का जैन मेला, रथोत्सवादि होते हैं, और अश्विन बदि २ से ४ तक भी एक मेला होता है।
रत्नपुरी फ़ैजाबाद जिले में, फैजाबाद-लखनऊ रेल मार्ग के सोहावल स्टेशन से लगभग २ कि० मी० उत्तर की ओर स्थित रोनाई (नौराइ) नामक गांव से १५वें तीर्थंकर धर्मनाथ की जन्मभूमि रत्नपुरी, रत्नपुर या रत्नवाह की पहचान की जाती है। यहाँ दो दिगम्बर एवं एक श्वेताम्बर, तीन पुराने जैन मंदिर हैं, एक धर्मशाला भी है। अयोध्या तीर्थ क्षेत्र कमिटी ही रत्नपुरी का भी प्रबन्ध करती है, किन्तु व्यवस्था सन्तोषजनक नहीं रहती। मंदिरों में मूर्तियाँ मनोज्ञ हैं।
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