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राजमल
यह अतिशय क्षेत्र एटा जिले में है । अवागढ़ भी उसी जिले में है। राजमल टूण्डला-एटा मार्ग पर स्थित 'बीचकानगला' गांव से ३ मील पर स्थित है। यहां नेमिनाथ भगवान की सातिशय प्रतिमा है, एक धर्मशाला भी है, मेला भी होता है।
तिलोकपुर
अवध प्रान्त के बाराबंकी जिले में वाराबंकी से १० मील और बिन्दौरा से ४ मील पर स्थित यह बड़ा गांव है । यहाँ लगभग दो-ढाई सौ वर्ष पुराना एक अच्छा शिखरबंद जैन मन्दिर है, जिसके शिखर की बनावट में लखनऊ की नवाबी स्थापत्य शैली का प्रभाव रहा प्रतीत होता है। इसी गांव में एक वैष्णव वैरागी परिवार के अधिकार में तीर्थंकर नेमिनाथ की एक ३ फुट ऊँची, श्यामवर्ण अति मनोज्ञ एवं अतिशयपूर्ण प्रतिमा रही चली आती है। उस प्रतिमा के कारण ही तिलोकपुर की प्रसिद्धि है।
बहसूमा
मेरठ जिले में, हस्तिनापुर के निकट बहसूमा नाम का कस्बा है, जो किसी समय गूजर राजाओं की राजधानी रहा। वहाँ के जैन मंदिर में एक प्राचीन प्रतिमा है, जिसे लोग बहुधा चौथे काल की कह देते हैं । संभावना यह है कि किसी समय हस्तिनापुर के जंगलों एवं खण्डहरों में से ही वह कभी किसी को प्राप्त हुई होगी।
बड़ागांव
मेरठ जिले की बागपत तहसील में कस्बा खेखड़ा के निकट बड़ागांव नाम का एक पुराना ग्राम है। लगभग ५०-५५ वर्ष पूर्व वहाँ एक चमत्कार के फलस्वरूप भूगर्भस्थ जैनमंदिर और मूत्तियां प्रकट हुई थीं। तभी से उस स्थान की अतिशय क्षेत्र के रूप में प्रसिद्धि हो गई।
वहलना
पश्चिमी प्रत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर के निकट स्थित बहलना ग्राम में एक सुन्दर प्राचीन जिनप्रतिमा की भूगर्भ से प्राप्ति होने से एक अच्छा मंदिर व धर्मशालाएँ आदि बन गई हैं। इधर कुछ वर्षों से इस अतिशय क्षेत्र की बड़ी प्रसिद्धि हुई है, और अक्तूबर में प्रतिवर्ष होनेवाले इसके रथोत्सव में लाखों व्यक्तियों की भीड़ एकत्र होने लगी है।
द्वाराहाट
कुमायूं-हिमालय में अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट नामक स्थान में १०वीं से १५वीं शती तक की कई सुन्दर जैन मूर्तियां प्राप्त हुई हैं, जो उसी स्थान में निर्मित हुई प्रतीत होती हैं। अतएव इससे प्रकट है कि पूर्व मध्यकाल में उस सुदूर पार्वतीय प्रदेश में भी एक अच्छी जैन बस्ती, जैन मंदिर और केन्द्र रहा होगा।
नैनीताल में भी नैनादेवी के मंदिर में कुछ वर्ष पूर्व तक कई प्राचीन जैन मत्तियां थीं।
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