Book Title: Bhagavana  Mahavira Smruti Granth
Author(s): Jyoti Prasad Jain
Publisher: Mahavir Nirvan Samiti Lakhnou

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Page 469
________________ (ख) अहिच्छत्र, रामनगर, जिला बरेली (४) राम नगर से रेवती बहोडा खेड़ा स्टेशन तक २३वें तीर्थकर श्री पार्श्वनाथ स्वामी सड़क निर्माण, ३ कि०मी० की ज्ञान कल्याणक भूमि (५) आंवला-सिरोही सड़क पर अकिल नदी पर पुल निर्माण (ग) चन्द्रपुरी जिला वाराणसी-८वें तीर्थंकर । (६) मुख्य सड़क (वाराणसी-गाजीपुर) से मन्दिर ____ श्री चन्द्रप्रभु की जन्मभूमि तक लिंक सड़क-२ कि०मी० (यह पुरातत्व विभाग द्वारा सुरक्षित स्थान है लेकिन मुख्य सड़क से मन्दिर तक का मार्ग एक दम कच्चा तथा असन्तोषजनक है) (घ) कौशाम्बी तथा पमोसा, (७) सराय आकिल से पभोसा होते हए कौशाम्बी जिला इलाहाबाद-६ठे तीर्थंकर तक की सड़क का निर्माण-यह इस समय कच्ची श्री पदमप्रभु की जन्म एवं तपोभूमि सड़क है (ङ) शौरीपुर बटेश्वर, जिला आगरा- (८) बटेश्वर से शौरीपुर तक की सड़क का निर्माण, २२वें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ स्वामी ५ कि०मी० की जन्म भूमि (च) रौनाही, जिला फैजाबाद-१५वें तीर्थं (९) लखनऊ-फैजाबाद राजमार्ग से घाघरा नदी के कर भगवान धर्मनाथ की जन्मभूमि तट पर स्थित धर्मनाथ स्वामी के मन्दिर तक सड़क का निर्माण-३ कि०मी (छ) खुखुन्दोग्राम जिला देवरिया-९वें तीर्थ (१०) नौनखार रेलवे स्टेशन से खुखुन्दोग्राम में पुष्प कर श्री पुष्पदन्त स्वामी की जन्म दन्त स्वामी के मन्दिर तक तथा वहां से देवरियासलेमपुर राजमार्ग तक सड़क का निर्माण ५ कि०मी० (ज) ऋषभ नगर मरसल गंज, जिला (११) जारखी, या कोटला से मरसलगंज तक सड़क का आगरा-प्राचीन अतिशय क्षेत्र निर्माण-३ या ६ कि०मी० (८) आदि तीर्थंकर भगवान ऋषभ देव एवं अन्य चार तीर्थकरों की जन्म स्थली अयोध्या, जिला फैजाबाद में इन तीर्थकरों की निशिया तक, जो कि अयोध्या नगरपालिका की सीमा के भीतर ही स्थित है, पहँचने के लिये मार्ग का निर्माण-१ कि०मी० । शासन से अनुरोध किया जाय कि अयोध्या नगरपलिका को उपरोक्त मार्ग के निर्माण का निदेश देने की कृपा करें। (९) सहेट महेट (श्रावस्ती), जिला बहराइच, में जो तीसरे तीर्थंकर श्री संभवनाथ की जन्मभूमि है, श्री संभवनाथ स्वामी के अति प्राचीन मन्दिर के अवशेष पुरातत्व विभाग द्वारा सुरक्षित घोषित किये हुए हैं। शासन के माध्यम से केन्द्रीय पुरातत्व विभाग से अनुरोध किया जाय कि उपरोक्त मन्दिर का मूल प्राचीन शैली में ही जीर्णोद्धार करने का अनुग्रह करें। यदि पुरातत्व विभाग के लिये जीर्णोद्धार स्वयं करना संभव न हो तो जैन समाज को यह काम करने की अनुमति प्रदान करें। (१०) मथुरा नगर अन्तिम केवली श्री जम्बू स्वामी की मोक्ष भूमि है तथा अति प्राचीन काल से यह नगर वैदिक, जैन एवं बौद्ध संस्कृतियों का संगम स्थल रहा है। इस नगर को एक महत्वपूर्ण पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित करना बहत वांछनीय है। भूमि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |

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