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इस नगर के कंकाली टीला स्थल में प्राचीनतम ऐतिहासिक अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस स्थान पर एक अति प्राचीन जैन स्तुप स्थित था जिसका निर्माणकाल प्रागऐतिहासिक युग तक जाता है। राज्य के पुरातत्व विभाग से संस्तुति की जाय कि उक्त प्राचीन स्तूप की आकृति के एक लघु स्तूप का निर्माण इस स्थान पर माडल के रूप में कराये तथा इस स्थल के उत्खनन से प्राप्त महत्वपूर्ण पुरातत्व सामग्री का विवरण एक प्रस्तर पट पर अंकित करा कर इस स्थल पर लगा दिया जाय जिससे कि यह स्थान पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बने।
(११) पार्श्वनाथ किला, जिला बिजनौर, एक अति प्राचीन जैन सांस्कृतिक केन्द्र था। इस समय इसके खंडहर टीलों के रूप में पड़े हुये हैं। पुरातत्व विभाग से अनुरोध किया जाय कि इन टीलों की खुदाई कराये ताकि भूगर्भ में छिपे पड़े प्राचीन ऐतिहासिक अवशेष प्रकाश में आ जाय।
(१२) संठियांव-डीह-फाजिलकानगर, जिला देवरिया, को कुछ विद्वान मल्ल क्षत्रियों की राजधानी एवं भगवान महावीर की निर्वाण भूमि 'पावा' मानते हैं। अतः यह मांग भी कतिपय क्षेत्रों द्वारा की जा रही है कि इस स्थान को भगवान महावीर की सही निर्वाण भूमि तथा निर्वाण जयन्ती मनाने के लिये प्रमुख स्थल घोषित कर दिया जाय तथा इसका नाम 'पावानगर' रख दिया जाय । समिति की राय में इस स्थान के विषय में अभी निर्णयात्मक अनुसंधान अपेक्षित है। अतः समिति के लिये इस विषय पर कोई मत अभिव्यक्त करना उचित न होगा। किन्तु समिति शासन से संस्तुति करती है कि राज्य के अथवा केन्द्र के पुरातत्व विभाग द्वारा इस स्थान की खदाई कराये जिससे कि ऐतिहासिक तथ्य प्रकाश में आ जाय ।
(ग)-ऐसे कार्यक्रम जिनमें प्रत्यक्ष रूप से वित्तीय मार निहित है- .
(१) प्रदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों के सहयोग से जैन संस्कृति, साहित्य एवं दर्शन तथा अहिंसा से सम्बन्धित विषयों पर ६ सेमिनारों का आयोजन तथा सेमिनारों में पठित निबन्धों का पुस्तकाकार मुद्रण एवं प्रकाशन आदि।
(२) भगवान महावीर की शिक्षा, जैन दर्शन एवं साहित्य सम्बन्धी विषयों पर विश्वविद्यालयों तथा उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों के छात्रों में निबन्ध प्रतियोगिताओं का आयोजन तथा श्रेष्ठ निबन्धों पर पुरस्कार देना।
(३) जैन संस्कृति का भारतीय संस्कृति में योगदान विषय पर एक सर्वोत्तम पुस्तक पर पुरस्कार एवं प्रकाशन सम्बन्धी सहायता ।
(४) शाकाहार के सिद्धांत एवं उनके संबंध में विश्व साहित्य का दिग्दर्शन । (५) उत्तर प्रदेश के जैन कला केन्द्रों की एक परिचयात्मक पुस्तिका का मुद्रण एवं प्रकाशन ।
(६) उत्तर प्रदेश के प्राचीन जैन स्थलों एवं भगवान महावीर की शिक्षाओं के सम्बन्ध में फोल्डरों का प्रकाशन ।
(७) २५०० वें वर्ष में स्थापित सार्वजनिक चिकित्सालयों एवं अन्य सार्वजनिक संस्थाओं में भगवान महावीर की सूक्तियां एवं शिक्षाएं शिलापट्टों पर लिखा कर लगवाना।
(८) जैन संस्कृति, कला, साहित्य एवं दर्शन सम्बन्धी साहित्य के क्रय के लिये सार्वजनिक पुस्तकालयों को विशेष अनुदान (रु. १००० प्रति पुस्तकालय)।
(९) प्रदेश भर में अन्य विविध कार्यक्रमों के लिये समिति को अनुदान । (१०) प्राचीन जैन सांस्कृतिक एवं कला कृतियों की सुरक्षा एवं संरक्षण के लिये अनुदान ।
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