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ख- ६
कन्या ने विचार किया - "मनुष्य जन्म अत्यन्त दुर्लभ है और सभी प्राणियों को दीर्धकाल के बाद प्राप्त होता है । इसी जन्म में मनुष्य संसार सागर से पार निकलने का यत्न कर सकता है । अतः जीवन-मरण के चक्र से मुक्त होने का यत्न करो।"
सेठ ने यह दृश्य देखा और विस्मय से कन्या को भी देखा । कन्या ने बताया- "मैं अंगराज दधिवाहन की पुत्री चन्दनबाला हूँ और वह तपस्वी तीर्थंकर महावीर हैं ।"
चन्दनबाला अन्ततः महावीर के संघ में दीक्षित हो गई और आर्यिका या साध्वी संघ की प्रमुख बनी ।
( ५ )
वत्स जनपद में ही तुंगिय सन्निवेश था जहाँ दत्त ब्राह्मण की यज्ञशाला थी । दत्त की पत्नी करुणा ने मेतार्य नामक पुत्र को जन्म दिया । मेतार्य अपने पिता का अनुगामी था और उसने शीघ्र ही सम्पूर्ण वेद-साहित्य का पारा - यण कर लिया एवं एक नैष्ठिक याजक बन गया । उसकी शाला में सैकड़ों अन्तेवासी थे । उसने अपने पिता से सुना था—“पूर्व भारत में एक श्रमण परम्परा है जो तपस्या पर बल देती है और याज्ञिक कर्मकाण्ड को व्यर्थ बताती है | श्रमण साधु बस्ती से बाहर ठहरते हैं, केवल एक बार आहार के लिये बस्ती में जाते हैं, एक स्थान पर तीन दिन से अधिक नहीं ठहरते, अपने पास परिग्रह नहीं रखते और अक्सर वस्त्र भी धारण नहीं करते, तप-संयम में दृढ़ रहते हैं और मांसाहार नहीं करते। वह जाति-पांति में विश्वास नहीं करते और सभी को उपदेश भी देते हैं और सभी से भिक्षा भी लेते हैं । वह वेद की निन्दा नहीं करते, ब्राह्मण की भी निन्दा नहीं करते, परन्तु वर्णाश्रम को गर्हित बताते हैं और कर्मकण्ड को वृथा बताते हैं ।”
तार्य ने अपने अन्तेवासियों से सुना - " श्रमणों में अन्तिम तीर्थंकर के इस काल में होने की अनुश्रुति है और सात तपस्वी तीर्थंकरत्व का दावा करते हैं ।"
तार्य ने पूछा- - "कौन हैं वे तपस्वी और क्या है उनकी प्रकृति ?”
अन्तेवासी - "आर्य ! एक हैं कपिलवस्तु के शाक्य मुनि गौतम बुद्ध जो भोग और त्याग के मध्य का मार्ग दुख से मुक्ति के लिये बताते हैं । उनका एक संघ है और मगधराज बिम्बिसार तथा कोसलराज प्रसेनजित उनके
भक्त हैं ।
दूसरे हैं पूरन कास्सप जो अक्रियावाद का प्रतिपादन करते हैं। उनका कहना है कि दुष्कर्म से पाप और सत्कर्म से पुण्य नहीं होता क्योंकि इन कर्मों का आत्मा पर कोई प्रभाव नहीं होता ।
तीसरे हैं मक्खलि गोसाल जो नियतिवादी हैं । वे नग्न रहते हैं और उनके अनुयायी आजीवक कहलाते । उनका कहना है कि जिस प्रकार सूत का गोला फेंकने पर उसके पूरी तरह खुल जाने तक वह आगे बढ़ता जायेगा, उसी प्रकार बुद्धिमानों और मूर्खों के दुखों का नाश तभी होगा जब वे संसार का समग्र चक्कर पूरा कर चुकेंगे ।
चौथे हैं अजित केकम्बलिन जो उच्छेदवादी हैं। उनका कहना है कि शरीर के भेद के पश्चात् विद्वानों और मूर्खों का उच्छेद होता वे नष्ट होते हैं, और मृत्यु के बाद उनका कुछ भी शेष नहीं रहता ।
पांचवें हैं पकुध कच्चायन जो अन्योन्यवादी हैं। उनका कहना है कि पृथ्वी, आप, तेज, वायु, सुख, दुख एवं जीव, सात शाश्वत पदार्थ हैं जो किसी के किये, करवाये, बनवाये या बनाये हुए नहीं हैं ।
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