________________
१२८ ]
ख - ६
जैन समाज यद्यपि संख्या में कम है परन्तु वह एक प्रभावशाली व्यापारिक समाज भारतवर्ष व उत्तर प्रदेश में है। उसने खुलकर पूरे उत्साह के साथ स्वतन्त्रता संग्राम में भाग भारतवर्ष व उत्तर प्रदेश में लिया।
उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश का बिजनौर जनपद लीजिए। उसकी जनसंख्या सत्याग्रहों के समय १० लाख थी और जैन समाज की केवल डेढ़ हजार थी। बिजनौर जनपद में कारावास जाने वाले लगभग १ हजार थे जो अनुपात से १ हजार में एक आता है। जबकि जैन सत्याग्रहियों की संख्या लगभग २५ थी जो अनुपात से १ हजार में १६ आते हैं।
बिजनौर जनपद के सत्याग्रहों का संचालन करने वाले भी रतन लाल जैन व श्री नेमिशरण जैन थे जिन्होंने वकालत छोड़कर कांग्रेस के कार्य को संभाला था ।
उसी प्रकार निकटवर्ती मेरठ मंडल के सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ आदि के जैनों ने— जहाँ वे काफी संख्या में हैं पूरे उत्साह से भाग लिया। सहारनपुर के भी अजितप्रसाद जैन (जो केन्द्रीय मंत्री रहे), मुजफ्फरनगर के श्री सुमतप्रसाद जैन मुख्य संचालक अपने-अपने जिलों के रहे। इन जनपदों में जैन बड़ी संख्या में सत्याग्रह में भाग लेकर कारावास गये । यही दशा आगरा मंडल की है। उस मंडल में भी ज़ैन काफी संख्या में सत्याग्रह में भाग लेकर कारावास गये । प्रमुख सत्याग्रहियों में सेठ अचलसिंह जैन एम०पी० का नाम विशेष उल्लेखनीय है । बुन्देलखंड के ललितपुर जनपद कानपुर, बनारस आदि नगरों में भी जैनों ने काफी भाग लिया। बनारस में श्रीखुशाल चन्द गोरावाले का नाम विशेष उल्लेखनीय है ।
महात्मा गांधी ने जिनको इंग्लैंड जाते हुये उनकी माता ने एक जैन साधु के द्वारा मांस व मंदिरा के प्रयोग न करने के नियम दिलाये थे-- जिनके कारण गांधी जी के जीवन में क्रान्ति हुई और पाश्चात्य संस्कृति थोथी व हेय दीखने लगी अहिंसात्मक सत्याग्रह का अविष्कार किया अहिंसात्मक सत्याग्रह अब तक धार्मिक क्षेत्र में सीमित था । खासकर साधु जीवन में तपस्या करते हुये उन पर जब मनुष्य या पशु द्वारा आक्रमण होता था, उसका शन्ति पूर्वक, मन को बिना विचलित हुये सहन करते थे, जिसमें कभी-कभी प्राण भी देने पड़ते थे । जैन धर्म के द्वारा अहिंसा सिद्धांत से प्रेरित होकर गांधीजी ने अहिंसात्मक सत्याग्रह राजनैतिक क्षेत्र में अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध सफलता पूर्वक चलाया। अहिंसात्मक सत्याग्रह आध्यात्मिक अस्त्र है। उसके प्रयोग से भारत जनता, जो कितनी ही शताब्दियों से दूसरों के आधीन रही थी और जो डरपोक व साहसहीन हो गई थी, उसमें उस सत्याग्रह से जीवन व आत्म स्फूर्ति आ गई। आत्म विश्वास के साथ अंग्रेजी शासन का वीरता के साथ मुकाबला किया 1
-
जैन समाज जो कभी भारत का मुख्य समाज रही है, जिसने भारतीय संस्कृति को अपने अहिंसा व अनेकान्त सिद्धांतों पर आधारित भावनाओं से प्रभावित किया, जिसके कारण भारतवर्ष में भिन्न-भिन्न धर्मानुयायी व जातियां एक साथ प्रेमपूर्वक रहती हैं और अपने अपने इष्टदेवों की उपासना अपने ढंग से करती हैं, इस प्रेमपूर्वक साथ-साथ रहने का श्रेय जैन समाज को है ।
,
जैन समाज जिसका ह्रास मुसलिम शासन के मारकाट युग में बड़ी तेजी से हुआ, जैन क्षत्रीय जो लाखों की संख्या में ये मांसाहारी बनकर साधारण हिन्दु समाज में मिल गये । बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ से ही जैन समाज में उत्थान की भावना उत्पन्न हुई। महात्मा गांधी के अहिंसात्मक सत्याग्रह ने जैन समाज में निर्भीकता, आत्म विश्वास की भावना जागृत की जिस कारण भा०दि० जैन पारिषद ने अर्न्तजातीय विवाह, दस्से जैनों को पूजा के अधिकार, श्रद्धायुक्त हरिजनों का मंदिर प्रवेश आदि प्रस्तावों के पास करने व कार्यान्वित करने से जैन सामाज में नया जीवन व स्फुर्ति उत्पन्न कर दी।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org