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उत्तर प्रदेश के उत्कीर्ण जैन लेख
और उनका महत्व
-श्री शैलेन्द्रकुमार रस्तोगी
भारत-हृदय उत्तर प्रदेश अपनी पुरा-सम्पदा के कारण विश्वविख्यात है । जैन, बौद्ध एवं ब्राह्मण संस्कृति का संगम यह भूमि रही है। यंतो पूरे प्रदेश में हजारों की संख्या में जैन मंदिर नगरों और ग्रामों में बिखरे पड़े हैं। कितने तो खण्डहर मात्र हैं और कितने ही सुन्दर अवस्था में हैं। इन मंदिरों में लेखयुक्त एवं लेख रहित, प्राचीन एवं अर्वाचीन जिनविग्रह प्राप्त होते हैं। पहले प्रकार की प्रतिमाओं की संख्या उसमें अपेक्षाकृत कम है, किन्तु मध्यकालीन एवं आधुनिक लेखयुक्त बहुत मूर्तियां मिलेंगी।
जैन बिम्ब इस प्रदेश में राजघाट व चन्द्रावती (वाराणसी); श्रावस्ती (गोंडा-बहराइच); ककुभ (कहाँयू) और खुखुन्द (गोरखपुर); शौरीपुर (आगरा); मथुरा-चौरासी व कंकालीटीला आदि; एटा; कम्पिल, संकिसा, कन्नौज (फर्रुखाबाद); चन्दवाडदुर्ग (फिरोजाबाद); द्वाराहाट (अल्मोड़ा); श्रीनगर (गढ़वाल); नैनीताल; गोविषाण-काशीपुर; हस्तिनापुर (मेरठ); पुरिमताल' (प्रयाग), पभोसा, कौशाम्बी; इटावा; रोनाई (रत्नपुरी), अयोध्या, तिलोकपुर (बाराबंकी); उन्नाव; महोबा, झांसी, ललितपुर जिलों के बानपुर, चांदपुर, दुधई, देवगढ़ प्रभृति से प्राप्त होती हैं। पुरातात्त्विक समृद्धि को देखते हुए संग्रहालयों की संख्या अति न्यून है। मुख्य संग्रहालय जहाँ जैन कलाकृतियाँ संग्रहीत हैं वे हैं भारत कला भवन (वाराणसी), इलाहाबाद संग्रहालय, राजकीय संग्रहालय मथुरा और राज्य संग्रहालय लखनऊ।
भारत कला भवन की कुछ अभिलिखित जैन प्रतिमाएँ प्रकाशित हुई हैं।'
इलाहाबाद संग्रहालय में यूं तो उ० प्र० एवं मध्य प्रदेश की जैन प्रतिमाएं आदि हैं किन्तु मूत्ति लेखों की दष्टि से पतियानदाई (म०प्र० सतना) से प्राप्त अम्बिका की मूत्ति है। यह अनुपम कृति है क्योंकि इसी पर तेईस अन्य शासन देवियां भी बनी हैं। उनके नीचे उनके नाम भी उत्कीर्ण हैं। मध्य में "रामदास" "पद्मावती"
१-मुनिकान्तिसागर, खण्डहरों का वैभव, पृ० १८७ २-उपरोक्त सूचना के लिए मैं पूज्य डा० ज्योति प्रसाद जैन जी का हृदय से आभारी हूँ। ३-श्री मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी ने विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित कराया है। ४-जैन नीरज, पतियान दाई मंदिर की मूति, अनेकान्त अग०६३, पृ० ९९
श्री प्रमोद चन्द्र, स्टोन स्कल्पचर इन इला० चिन्न-४७० CLX |
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