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पद्मप्रभु के तप और ज्ञान कल्याणक हुए थे। इस तपोभूमि पर ईसापूर्व दूसरी शती में अहिच्छत्रा के राजा आषाढ़सेन ने काश्यपीय अरहंतों (जैन मुनियों) के निवास के लिए गुफाएं बनवाई थीं, जैसाकि वहां प्राप्त उसके शिलालेख से प्रगट है । उस समय कौशाम्बी का राजा बहसतिमित्र था जो उक्त आषाढ़सेन का भानजा था । पहाड़ी पर अन्य भी प्राचीन जैन अवशेष प्राप्त हैं, और प्रयाग निवासी हीरालाल गोयल द्वारा १८२४ ई० में बनवाया हुआ पद्मप्रभु का भव्य मन्दिर है, तथा एक धर्मशाला भी है । यह स्थान अवश्य ही प्राचीनकाल में जैन मुनियों की तपोभूमि रहा है।
संकिसा
फर्रुखाबाद जिले में, मोटा रेल स्टेशन से लगभग ८ कि० मी० पर प्राचीन संकिसा, संकास्स या संकाश्य नामक प्राचीन सांस्कृतिक केन्द्र के अवशेष हैं । वर्तमान कम्पिल से यह स्थान लगभग ३० कि०मी० दूर है, किन्तु प्राचीन समय में सम्भवतया महानगरी काम्पिल्य का ही एक संनिवेश था। यहां मौर्यकाल जितने प्राचीन पुरातत्त्वावशेष मिले हैं, जिनमें जैनमन्दिरों और मतियों के अवशेष भी मिले हैं। जनरल कनिंघम को निकटवर्ती पिलखना टीले के ऊपर भी एक जिनमन्दिर के ध्वंसावशेष मिले थे। यह स्थान कम्पिल्य में जन्मे १३७ तीर्थकर विमलनाथ की तप और केवल ज्ञान भूमि है। मध्यकाल में जैन कवि धनपाल एवं भगवतीदास इसी स्थान के निवासी थे, और मुनि ब्रह्मगुलाल ने भी यहां निवास किया था। संकिसा बौद्ध धर्म का भी तीर्थ है, और इधर सैकड़ों वर्षों से उसी रूप में उसकी अधिक प्रसिद्धि रही है।
अहिच्छत्रा
बरेली जिले की आंवला तहसील के कस्बे रामनगर के बाह्य भाग में सुप्रसिद्ध जैनतीर्थ अहिच्छता है। इस स्थान पर २३७ तीर्थकर पानाथ पर पुराणप्रसिद्ध महा उपसर्ग हुआ था और उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हुई थी। यहीं भगवान पानाथ के प्रथम समवसरण की रचना हुई थी । किसी समय यहां एक विशाल एवं रमणीक नगर था, किन्तु अब जंगल में यत्र-तत्र फैले प्राचीन टीले और ध्वस्त खण्डहर ही शेष हैं। इनके अतिरिक्त एक भव्य एवं विशाल जैन मन्दिर है जिसमें पांच वेदियां हैं । एक वेदी 'तिखाल वाले बाबा' की कहलाती है जिसमें भ० पानाथ की प्रतिमा तथा चरण चिन्ह स्थापित हैं । अन्य वेदियों में भी मनोज्ञ जैन प्रतिमाएँ विराजमान हैं। उपसर्ग स्थान पर एक दर्शनीय छत्री (निषीधिका) का भी निर्माण हो चुका है। एक शिखरबन्द मन्दिर रामनगर कस्बे में भी है। क्षेत्र पर एक विशाल धर्मशाला भी है, जिसमें यात्रियों के लिए आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध हैं। बिजली भी आ गई है और रेवती बहोडाखेड़ा से, जहां निकटतम रेल स्टेशन है, क्षेत्र तक पक्की सड़क भी बन गई है। आंवला रेल स्टेशन से क्षेत्र लगभग ६ मील है। क्षेत्र के निकट ही एक राजकीय विकास खण्ड की भी स्थापना हो चुकी है। प्रतिवर्ष चैत्र वदी ८ से १२ तक इस क्षेत्र पर भारी जैन मेला होता है । इस तीर्थ क्षेत्र की व्यवस्था एक प्रबन्धकारिणी कमेटी करती है, जिसने तथा रामपुर आदि निकटवर्ती स्थानों के जैनों ने गत वर्षों में इस क्षेत्र के संरक्षण, उन्नति, विकास और प्रचार में प्रभूत योग दिया है। फलस्वरूप सहस्त्रों यात्री प्रतिवर्ष इस तीर्थ की यात्रा करने आते हैं।
यह स्थान २३वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की ज्ञानकल्याण भूमि है। ई०पू० ८७७ में जन्मे और ७७७ में निर्वाण प्राप्त भ० पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता को अब प्रायः सभी देशी एवं विदेशी विद्वानों ने मान्य कर लिया है । अपने तप काल में, हस्तिनापुर में पारणा करके वह गंगा के किनारे-किनारे जि० बिजनौर के उस स्थान पर
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