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बदलते सामाजिक मूल्यों में महावीर वाणी की भूमिका
आत्मा और शब्द अजर-अमर
वैदिक परम्परा में बताया गया है कि शब्द ब्रह्म' है, वह अजर-अमर है । इसका अभिप्राय यह है कि शब्द का विनाश नहीं होता, वाणी सदैव अमर रहती है। तब प्रश्न हो सकता है कि जब शब्द का विनाश नहीं होता, वाणी सदैव अमर रहती है, तब तो कोई भी शब्द क्यों न हो, कोई भी वाणी क्यों न हो, चाहे व महान् पुरुषों की हो अथवा अधमजनों की, भगवान की हो अथवा पामर प्राणियों की, दोनों ही अमर होने के नाते परस्पर टकराती रहेंगी, उनका कोलाहल बना ही रहेगा। फिर वर्तमान में उससे हमें क्या लाभ ? महान् पुरुषों की वाणी ही कल्याणी
भारतीय संस्कृति में एक बहुत बड़ी बात कही गई है कि पाप पर पुण्य की, असत्य पर सत्य की, अन्याय पर न्याय की, शैतान पर इन्सान की और दानव पर देव की सदैव विजय हुआ करती है । 'सत्यमेव जयते' भारतीय संस्कृति का पावन सिद्धान्त वाक्य है । इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि यद्यपि देव और दानव की या पामरप्राणी की वाणी सर्वकाल और सर्वक्षेत्र में जन कल्याणकारी न होने से लोक में अमरता प्राप्त नहीं कर सकती, जब कि महान आत्माओं की वाणी, जो कि मुख्यतः सर्वक्षेत्र और सर्वकाल में लोक-कल्याणार्थं ही निःसृत हुआ करती है, लोक में मर्यादित, प्रतिष्ठित एवं अमर होती है ।
महावीर वाणी की युगसापेक्षाता
भगवान् महावीर की वाणी, भी उस युग में उत्पीड़न के बीच सार्वजनिक सर्वक्षेत्रीय कल्याण स्वरूप निस्सृत हुई थी, अतः वह युगान्तरकारी एवं अजर-अमर है। भगवान् महावीर की वाणी का, उनके अमृतोपम संदेश का शब्द शब्द एवं अक्षर-अक्षर प्रत्येक युग में और प्रत्येक क्षेत्र में लोक कल्याण कारक है । कोटिशः समस्याओं के जाल में उलझे मानवों के लिये प्राणदायी है। चाहे हम इसे आध्यात्मिक या दार्शनिक रूप में लें अथवा भौतिक या जागतिक रूप में, यह सर्वतोभावेन सर्वज्ञत्व मर्यादा समन्विता वाणी है। किसी युग विशेष के लिये नहीं, अपितु युगों-युगों के लिये समान रूप से उपादेय है ।
१.
- डा० उम्मेदमल मुनोत
इसे स्पष्ट करने के लिये हमें भगवान के मंगलमय उपदेशों की गहराई में गोते लगाना होगा, उसके मर्म को समझना होगा, उसका युग सापेक्ष एवं समीचीनता की दृष्टि से विश्लेषण करना होगा । इस लोक में भगवान महावीर का आविर्भाव ( अवतार ) आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व हुआ था । तब की और अब की मान्यताओं, परम्पराओं, रूढ़ियों, रीतियों, जीवन-स्तरीय समस्याओं, युगीन परिस्थितियों में पर्याप्त अन्तर है । आधुनिक युग
'शब्दं ब्रह्मेति व्यजानात् ' -उपनिषद |
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