________________
[ ६७
मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । इन मूर्तियों में देवांगनाओं के अंग प्रत्यंगों के चारु - विन्यास तथा उनकी भावभंगिमाएं विशेषरूप से दर्शनीय हैं । खजुराहो का दूसरा मुख्य जैन मन्दिर आदिनाथ का है । इसका स्थापत्य पार्श्वनाथ मन्दिर के समान है ।
ख - ४
विदिशा जिले के ग्यारसपुर नामक स्थान में मालादेवी मन्दिर है । उसके बहिर्भाग की सज्जा तथा गर्भगृह की विशाल प्रतिमाएं कलात्मक अभिरुचि की द्योतक हैं। मध्य भारत में मध्यकाल में ग्वालियर, देवगढ़, चन्देरी, अजयगढ़, अहार आदि स्थानों में स्थापत्य तथा मूर्तिकला का प्रचुर विकास हुआ।
राजस्थान में ओसिया, राणकपुर, सादरी, आबू पर्वत आदि अनेक स्थानों में जैन स्थापत्य के अनेक उत्तम उदाहरण विद्यमान हैं। उनमें भव्यता के साथ कलात्मक अभिरुचि का सामंजस्य है । आबू पर्वत के जैन स्मारकों में संगमर्मर का अत्यन्त बारीक कटाव दृष्टव्य है । उत्तर मध्यकालीन भारतीय स्थापत्य का रोचक स्वरूप यहां देखने को मिलता है ।
गुजरात, कर्नाटक तथा आंध्र प्रदेश के अनेक भागों में मध्यकालीन जैन स्थापत्य का विकास द्रष्टव्य है । दक्षिण में विजयनगर राज्य के समय तक स्थापत्य और मूर्तिकला का विकास साथ-साथ होता रहा ।
जैन स्थापत्य कला का प्राचुर्य 'देवालय - नगरों में देखने को मिलता है । ऐसे स्थलों पर सैकड़ों मन्दिर पास-पास बने हुए हैं ।
गिरनार, शत्रुंजय, आबू, पपौरा, अहार, थूबोन, कुण्डलपुर, सोनागिरि आदि अनेक स्थलों पर जैन मन्दिर नगर विद्यमान हैं। ऐसे मन्दिर-नगरों के लिए पर्वत श्रृंखलाए विशेष रूप से चुनी गयीं ।
आधुनिक युग में जैन स्थापत्य की परम्परा जारी मिलती है। वास्तु के अनेक प्राचीन लक्षणों को आधुनिक कला में भी हम रूपायित पाते हैं । भारतीय संस्कृति तथा ललितकलाओं के इतिहास के अध्ययन में जैन स्थापत्य कला का निस्संदेह महत्वपूर्ण स्थान है ।
Jain Education International
भगवान
२५००८
महावीर
वां
卐
निर्वाण
परस्परोपग्रहो जीवानाम
महोत्सव
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org