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मांसाहार : अनिवार्यता जैसी कोई बात नहीं
-श्री रामेश्वर दयाल दुबे
सम्भव है, कमी यह तर्क सही रहा हो कि किसी क्षेत्र विशेष के लोग प्रकृति द्वारा मांसाहार के लिए विवश हैं। आज की विकासशील स्थिति में जबकि यातायात के साधन हर एक चीज सलम बना सकते हैं व वैज्ञानिक प्रगति के बल पर किसी क्षेत्र में न उगने वाली चीज भी उपजाई जा सकती हैं, तब इस तर्क को परे रखकर मनुष्य बर्बरता त्यागे, यही अपेक्षा है।
प्राणिमात्र को भोजन की अपेक्षा रहती है। छोटे से छोटे कीड़े-मकोड़े से लेकर बड़े से बड़े जीवधारी को, यहां तक कि सभी प्रकार की वनस्पति तक को अपने जीवन की रक्षा के लिए, अपनी वृद्धि के लिए भोजन की आवश्यकता होती है । जीवन क्रिया में निरन्तर शक्ति का ह्रास होता है। शरीर की इस शक्ति क्षय की पूर्ति के लिये भोजन की आवश्यकता होती है । सम्पूर्ण जीवधारियों के बल तथा ओज का मूलाधार भोजन हुआ करता है । यदि प्राणी को भोजन प्राप्त न हो, तो उसकी जीवन-क्रिया ही शीघ्र समाप्त हो जावे, अतः प्राणिमान के लिये भोजन का विशेष महत्व है।
वैज्ञानिकों के अनुसार भोजन की आवश्यकता के तीन प्रधान कारण हैं
(१) शरीर निर्माण तथा तन्तु-क्षय की पूर्ति (२) जीवनोष्मा और जीवन-क्रिया का आधार (३) स्वास्थ्य की रक्षा और रोगों को दूर अखने की शक्ति का संचयन
शरीर सम्बन्धी इन्हीं आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये प्राणी संसार में उपलब्ध सामग्री में से अपने भोजन को प्राप्त करता है । देश-काल के अनुसार जब जिसे जो वस्तु भोजन के रूप में आसानी से प्राप्त हो जाती है, उसका भोजन हो जाता है । इसका प्रमाण हमें इतिहास और भूगोल के ग्रन्थों से मिल जाता है। देश और काल का प्रभाव भोजन पर पड़ता है।
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