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ख - ५
शाकाहार से ही अहिंसक समाजरचना :
अहिंसक समाजरचना का अर्थ ही यह है कि जिस समाज में मनुष्यों को ही नहीं, दूसरे प्राणियों को भी सुखशांति से जीने का अवसर मिले, सबको रोटी, रोजी, सुरक्षा शान्ति प्राप्त हो, सबका जीवन सहअस्तित्व की भावना पर टिका हो । और ऐसा तभी हो सकता है, जब समाज में शाकाहार का अधिकाधिक प्रचार-प्रसार हो । शाकाहार से ही समाज में सहअस्तित्व, न्याय, सुरक्षा और शान्तिपूर्वक जीने की मनोवृत्ति बन सकती है ।
भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति डा० राजेन्द्रप्रसाद ने कहा था - "यदि दुनिया से युद्धों को मिटाना है तो मांसाहार को मिटाना होगा ।" एडवर्ड एच० किरबी ( चेयरमैन वेजीटेरियन सोसायटी) ने इस बात का समर्थन किया है - " शाकाहारी नीति का अनुसरण करने से ही पृथ्वी पर शान्ति, प्रेम और आनन्द चिरकाल तक बने रहेंगे ।" अतः दुनिया की सबसे बेहतर समाजरचना अहिंसक है और उसे स्थापित करना है तो सामाजिकता के इस पहलू की दृष्टि से शाकाहार को अपनाए बिना कोई चारा नहीं । मांसाहार स्वयं ही हिंसा की बुनियाद पर टिका है, उससे अहिंसक समाजरचना कदापि नहीं हो सकती । इसलिए पाश्चात्य विद्वान मोरिस सी० कोघली ने लिखा है कि यदि पृथ्वी पर स्वर्ग का साम्राज्य स्थापित करना है तो पहले कदम के रूप में मांस भोजन करना सर्वथा वर्जनीय करना होगा । इसलिए यह निःसंदेह कहा जा सकता है कि मांसाहार से अहिंसक समाजरचना नहीं हो सकेगी, वह सो शाकाहार से ही संभव है ।
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मांसाहार - त्याग का सामाजिक मूल्य
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- मिस कैथरीन हिलमैन ( सरला देवी )
महावीर और बुद्ध के जमाने से भारत में अहिंसा के सिद्धान्त की वजह से काफी जमातों ने मांसहार का faषेध किया था लेकिन मांसाहार को औसत में सामाजिक मान्यता नहीं मिली थी। उसका मूल्य नैतिक और आध्यात्मिक विचार तथा भूत दया पर आधारित था। उसका प्रभाव सिर्फ व्यक्तिगत चरित्र पर नहीं, बल्कि हमारे राष्ट्रीय चरित्र पर भी पड़ा था । यह हमारे दर्शन शास्त्र के विकास के लिए एक आवश्यक तत्व था । भूतविद्या के विकास के लिये भी वह आवश्यक था। यह हमारे देश की संस्कृति का एक बहुत महत्वपूर्ण अंग था, जिसकी वजह भारत का तत्व दर्शन पश्चिम में भी मान्यता प्राप्त कर सका है ।
लेकिन आजकल का शिक्षित वर्ग दकियानूस बनने से बहुत घबड़ाता है, इसलिये आजकल भारत की सांस्कृतिक मान्यताओं के बदले में, पश्चिमी मान्यताओं की ओर झुकाव ज्यादा है । अतः हर प्रकार के संयम को तिलांजलि देने के साथ ही साथ हमारे शिक्षित वर्ग में बहुत लोग अहिंसा के भी सिद्धांत को छोड़कर, मांसाहार करने में अपनी आधुनिकता समझने लगे हैं ।
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