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१४ ] मेरा अनुभव है कि मांसहार की अपेक्षा शाकाहारी १० वर्ष अधिक जी सकता है ।
-मि० होरेस ग्रीले
सन् १९०८ ई० में प्रसिद्ध विद्युत-शास्त्रज्ञ ए. ई० वेरिस ने २५ वर्ष लगातार अपनी प्रयोगशाला में परिश्रम करने के अनन्तर सिद्ध किया है कि सब प्रकार के फल और मेवों में एक प्रकार की बिजली भरी हुई है, जिससे शरीर का पूर्ण रूप से पोषण होता है।
-ए० ई० वेरिस (हम सौ वर्ष कैसे जीवें) मनुष्य के जीवन पालन-पोषण के लिए जिस वस्तु की आवश्यकता है, वह सब बनस्पति द्वारा प्राप्त हो सकती हैं।
-प्रो० जोहन रे, एफ. आर. एस.
आप यह निश्चित रूप से समझ लीजिए कि 'मांस' मनुष्य का भोजन नहीं है । प्राचीन ग्रन्थों में राक्षसों व दैत्यों आदि को मांसाहारी बताया है। इससे यह सूचित होता है कि 'मांसभोजी' की अन्तरवृत्तियां राक्षसी हो जाती हैं । क्रूरता, लोलुपता, कठोरता और प्रतिक्षण उग्रता, ये सब मांसाहार के दुष्परिणाम हैं जो मन पर होते हैं । संसार में अगर अहिंसा, प्रेम, सत्य, दया एवं ब्रह्मचर्य तथा मैत्री का प्रचार करना है, तो सबसे पहले मनुष्य को शाकाहारी बनना होगा । शाकाहार के प्रचार के बिना अहिंसा और दया कैसे फल-फल सकेगी ?
-आचार्य श्री विजयबल्लमसूरि "आपको अपनी धारणा बनानी चाहिए कि मै आपके विश्वास का पात्र हूँ या नहीं। मैं इसे विश्वास कहता हूँ क्योंकि मैं शरीरविज्ञान सम्बन्धी तर्कों का कम आदर करता हूँ जिन्हें हम जड़वादी सिद्धान्त से शिक्षित युग को सम्बोधित करते हैं । जब तक हम शुद्ध मनोविज्ञान का विज्ञान विकसित नहीं कर लेते हम अध्यात्म-विधा तक नहीं पहुँचेंगे।
वह प्रत्येक वस्तु, जो कभी मनुष्य ने खाई है, कल धरती से हटा ली जाए, यहां तक कि मनुष्य भक्षण भी वाधित हो...."हम भूख से नहीं मरेंगे। लाशों को खाना कितना अनावश्यक और मूर्खतापूर्ण हैं। सब पर विचारें जो इसमें अन्तनिहित है...७० वर्ष से भी अधिक शाकाहारी रहने के विषय में मुझे कुछ भी नहीं कहना है। परिणाम लोगों के सामने हैं।"
-जार्ज बर्नार्डशा
"मैं नदी की ओर देख रहा था, अचानक मैंने देखा "बहुत गहरे विक्षोभ से भरी एक भद्दी-सी चिड़िया पानी में सामने के किनारे का रास्ता बना रही थी। मैंने मालूम किया वह एक पालतू मुर्गी थी जो कि छोटी किश्ती में त्रासदायक भय से मुक्त होने के लिए तख्ते पर से कूद गई थी और अब उन्मत्त होकर पार जाने का यत्न कर रही थी। वह लगभग किनारे पर पहुंच गई थी, तभी अपने निर्दयी पीछा करने वाले के पंजों में दबोच ली गई । गर्दन से पकड़ कर प्रसन्नता के साथ वापिस लाई गई। मैंने रसोइये से कहा- मैं भोजन में कोई मांस नहीं लूंगा। हम मांस निगल जाते हैं, क्योंकि निर्दय और पापपूर्ण कार्य जो हम करते हैं, उस पर सोचते नहीं। अनेक दुष्कर्म ऐसे हैं जो स्वयं मनुष्य द्वारा निर्मित हैं जिसका अन्याय उन्हें अपने स्वभाव, रियाज और परम्परा से भिन्न करता है।"
-रवीन्द्रनाथ टैगोर
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