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उत्तर प्रदेश में जैन धर्म
का
उदय और विकास
प्रदेश
'उत्तर प्रदेश' सर्वतन्त्र, जनतन्त्रीय गणतन्त्र भारतीय संघ का एक प्रमुख राज्य है । उत्तर में तिब्बती पठार एवं नेपाल राज्य, दक्षिण में राजस्थान एवं मध्य प्रदेश, पूर्व में बिहार राज्य और पश्चिम में हिमाचल प्रदेश, दिल्ली ( केन्द्र प्रशासित क्षेत्र ), हरयाणा और पंजाब राज्यों से परिसीमित लगभग नौ करोड़ जनसंख्या का यह प्रदेश लगभग तीन लाख वर्ग किलो मीटर में फैला हुआ है । जनसंख्या की दृष्टि से वह भारतीय संघ की सभी इकाइयों से बड़ा है, गृहसंख्या एवं ग्राम संख्या में भी वह सर्वप्रथम है, किन्तु नगरों की संख्या की दृष्टि से उसका दूसरा तथा क्षेत्रफल की दृष्टि से चौथा स्थान है । जलवायु समशीतोष्ण है, भूमि बहुधा उर्वरा है, वन्य सम्पत्ति प्रभूत है और खनिज भी अपर्याप्त नहीं हैं | राजनैतिक, आर्थिक एवं सामाजिक ही नहीं, नृतात्त्विक, भाषयिक एवं सांस्कृतिक दृष्टियों से प्रायः एकसूत्रता है । प्राचीन भारत की दो प्रधान सांस्कृतिक धाराओं, श्रमण और ब्राह्मण का ही नहीं, उनकी प्रमुख उप-धाराओं, जैन और बौद्ध तथा वैदिक एवं पौराणिक (शैव, वैष्णवादि) का भी तथा कालान्तर में मुस्लिम और ईसाई जैसी विदेशी संस्कृतियों का भी सुखद संगमस्थल यह प्रदेश रहा है ।
मस्तक पर हिमकिरीट से सुशोभित और वक्षस्थल पर पुण्यतोया भागीरथी गंगा एव सूर्यतनया यमुना तथा उन दोनों के परिवार की दसियों सहायक सरिताओं से सिंचित भारतवर्ष का यह हृतप्रदेश, भारतीय धर्म, दर्शन, संस्कृति और सभ्यता का उद्गम स्थल, उनके विकास का क्रीडाक्षेत्र और भारतीय इतिहास का चिरकालीन केन्द्र बिन्दु रहा है । प्राचीन काल में इसे आर्यावर्त, ब्रह्मावर्त, ब्रह्मर्षि देश, मध्यदेश जैसी संज्ञाएं दी गयीं । आर्यावर्त की सीमाएं पूर्वी समुद्र से लेकर पश्चिमी समुद्र और हिमालय से विन्ध्याचल पर्यन्त बताई गयी हैं, और उसके अंतर्गत मध्यदेश की सीमाएँ पूर्ण में पारियात्र या प्रयाग से लेकर पश्चिम में विनशन अथवा कुरुक्षेत्र पर्यन्त बताई गई हैं । वैदिक आर्य सभ्यताका प्रधान केन्द्र ब्रह्मावर्त या ब्रह्मर्षि देश उक्त मध्यदेश के पश्चिमार्ध से सूचित होता था । ये मध्यदेशादि नाम किसी भौगोलिक या राजनैतिक इकाई के सूचक नहीं थे, वरन् सांस्कृतिक एकसूत्रता के द्योतक थे । मुसलमानों के भारत प्रवेश के उपरान्त उनके द्वारा प्रायः उक्त मध्यदेश ही 'हिन्दुस्तान' कहलाया । पूरे मध्यकाल में सामान्यतया पूरे उत्तर भारत के लिए और विशेषतया गंगा-यमुना अन्तर्वेद ( दोआब ) से व्याप्त, अब के बहुभाग ऊत्तर प्रदेश के लिए हिन्दुस्थान या हिन्दुस्तान शब्द ही प्रयुक्त होता रहा । आज भी बंगाली हो या पंजाबी अथवा दक्षिण भारतीय हो, इस प्रदेश को हिन्दुस्तान तथा इसकी भाषा और निवासियों को हिन्दुस्तानी ही प्राय: कहता है । अठारहवीं शताब्दी के मध्य के लगभग जब व्यापारी अंग्रेज भारत में अपना राज्य जमाने के लिए प्रयत्नशील हुए तो बंगाल को उन्होंने अपना केन्द्र बनाया था - कलकत्ता ही उनके गवर्नर जनरल की राजधानी थी । सन् १७६४ ई० की की संधि के परिणामस्वरूप उन्होंने जब पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ जिले दिल्ली के मुग़ल बादशाह शाहआलम और
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