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चाहिये । जहाँ तक मैं धर्म को समझ पाया हूँ वह यही है कि धर्म मुझकों ऐसे अवसरों पर भी जबकि जीवनमरण का संकट उपस्थित हो मांस अथवा अण्डा खाने की आज्ञा नहीं देता। मांस मिश्रित खराक खाने वालों के पीछे अनेक रोग लगे रहते हैं। बहुतेरे बाहर से देखने में नीरोग भी जान पड़ते हैं। हमारे शरीर के सब अवयव और गठन देखने से यह प्रत्यक्ष हो जाता है कि हम मांस खाने के लिये पैदा नहीं हुए।
डाक्टर किंग्सफोर्ड और हेग ने मांस की खुराक से शरीर पर होने वाले बुरे असर को बहुत ही स्पष्ट रूप से बतलाया है। इन दोनों ने यह बात साबित कर दी है कि दाल खाने से जो एसिड पैदा होता है, वहीं एसिड मांस खाने से बनता या पैदा होता है। मांस खाने से दातों को हानि पहुँचती है, संधिवात हो जाता है। यहीं तक बस नहीं, इसके खाने से मनुष्यों में क्रोध उत्पन्न होता है। हमारी आरोग्यता की व्याख्या अनुसार क्रोधी मनुष्य निरोग नहीं गिना जा सकता। केवल मांसभोजियों के भोजन पर विचार करने की जरूरत नहीं, उनकी दशा ऐसी अधम है कि उसका ख्याल कर हम मांस खाना कभी पसन्द नहीं कर सकते। मांसाहारी कभी नीरोग नहीं कहे जा सकते।
-महात्मा गांधी
फिर से कहता हूँ कि मुझे निरामिष आहार ही पसन्द है। हम लोगों ने (मैंने, मेरे पिता श्री ने, या उनके पिताजी ने) कभी मांस नहीं खाया। पशु-पक्षी का मांस तो छोड दीजिये. मछलियाँ भी नहीं खायी हैं. न: हैं। आइंदा भी ऐसा आहार खाने की न इच्छा है, न संभावना। प्राणियों को मार कर उनका मांस खाने की उपेक्षा मैं भूखे मर जाना पसन्द करूँगा। यह है मेरी निष्ठा ।
-काका कालेलकर
मेरा विश्वास है कि आज भारतवर्ष में यदि सभी लोग मांस भक्षण छोड़ दें तो ये साम्प्रदायिक और जातीय कलह एक दम दूर हो जायें। भारतीयों के लिये मांस भक्षण कभी कल्याण कारक नहीं हो सकता, सात्विक अन्नाहार और फलाहार से मस्तिष्क जितना ही शान्त होकर कार्य करता है मांसाहार से उतना ही उत्तेजित रहता है।
-वैध हनुमान प्रसाद शर्मा
प्राकृतिक नियम समय-समय नहीं बदले जा सकते। एक अच्छे काम का अच्छा फल मिलता है और बुरे काम का बुरा फल मिलता है । यह कर्म सिद्धान्त है । इस कर्म सिद्धान्त के अनुसार प्रकृति का यह नियम भी लागू होता है कि यदि कोई किसी जीव की इतिश्री करता है, यानी उसके जीवन का अन्त कर देता है तो उस पाप का भागी वही कुकर्म करने वाला होता है। अतः प्रकृति के इस नियम को दृष्टि में रखते हुए मांस और अण्डे मत खाओ जिससे कि जीवन का अन्त ही हो जाता है यानी मार डाला जाता है।
-डा. व. ज. जयसूर्य, सीलोन सिलवेस्टर, ग्रेहम, प्रो० एस० फोलर, जे. एफ-न्यूटन, जे० स्मिथ, डा० ओ० ए० अलवर हिडकलेन्ड, चीन, लेम्ब वकान, ट्रेजी, ओ० लास, पेम्वर्टन, ह्यईटेला इत्यादि कई डाक्टरों, प्रवीण चिकित्सकों ने अनेक दृढ़तर प्रमाणों से सिद्ध किया है कि मांस मछली खाने से शरीर व्याधि मंदिर हो जाता है। यकृत, यक्ष्मा, राज यक्ष्मा, मगी, पादशोथ, वातरोग, संधिवात (Rheumatism), नासूर (Caneer) और क्षय रोग (Consumption) आदि रोग उत्पन्न हो जाते हैं, जिससे मनुष्य को दारुण दुःख भोगना पड़ता है। प्रशंसित डाक्टरों ने प्रत्यक्ष उदाहरण द्वारा यह प्रगट किया है कि मांस मछली खाना छोड़ देने से मनुष्य के उत्कट रोग समूल नष्ट हो गये हैं, वे हृष्ट-पुष्ट हो
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