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३० ] अण्डे खाना हिंसा है
हम सबको यह सूचना देना चाहते हैं कि अण्डों में बहुत से बच्चे निकलते हैं, उममें सबसे अच्छे बच्चों को छोड़कर बाकी मार दिये जाते हैं। एक या दो साल बाद जबकि इन अच्छी नस्ल की मुर्गियों की अण्डे देने की शक्ति क्षीण हो जाती है, तो उन्हें भी मारकर पेट में कब्रिस्तान बनाया जाता है। केवल इतने ही से पीछा नहीं छूटता, आधुनिक दरबों के फर्श पर तार लगे रहते हैं, जिनसे मुर्गियों के पैर दर्द करने लगते हैं और रात में बीचबीच में बिजली का प्रकाश आ जाता है और फिर चला जाता है जिससे कि मुर्गियां समझे कि दिन हो गया है और ताकि वे कुछ खायें और अण्डे ज्यादा दें। मुर्गियों को पृथ्वी तक का स्पर्श नहीं कराया जाता है। इस प्रकार सब प्रकार की सूचनायें जानने के बाद कोई भी व्यक्ति अण्डे खाना पसन्द नहीं करेगा। केवल इसलिए ही नहीं कि इन जानवरों के साथ कितनी निर्दयता बर्ती जाती है बल्कि इसलिये भी कि स्वास्थ्य को हानि पहुँचती है। इस प्रकार की मुर्गियों से निकले अण्डे जिनमें मुर्गी को बिना दबाये हुए ही कृत्रिम उपायों से अण्डे मुगियों ने दिये हों किसी प्रकार भी मनुष्य के लिये हितकर नहीं हो सकते हैं। यदि इस प्रकार कृत्रिम उपायों से अच्छे अण्डे हम निकाल भी लें तो हम बिना अण्डों के ज्यादा अच्छे रहेंगे बनिस्वत् इसके कि हम ऐसे अण्डों को खायें क्योंकि ऐसे अण्डों में कोलेस्टरोल की मात्रा बहुत अधिक होती है जो कि धमनियां, दिल, दिमाग और गुर्दे की बीमारियों और पिताशय में पथरी का मुख्य कारण है। फल, शाक और शाक से निकले तेल कोलस्टरौल नहीं होता।
-डा० कैथैराइन निम्मों अण्डे मनुष्य का प्राकृतिक प्राहार नहीं
अण्डे जो कि मुर्गियों के बीज रूप हैं उनको अण्डों से निकले मुर्गी के बच्चों से अलग नहीं समझना चाहिये क्योंकि बच्चे उसे उसी अण्डे के तत्व से निकलते हैं। जानवरों का बीज मानव से ज्यादा संख्या में पैदायश करता है क्योंकि कच्चा अण्डा मनुष्य में वीर्य विकार पैदा करता है। बहुधा अण्डे को मुर्गी से निकला हुआ फल कहा जाता है जो कि एक विचित्र कथन है, क्योंकि अण्डे में एक सच्चे बीज के सब गुण मौजूद हैं। यदि हम इसकी तुलना एकोन के वक्ष के फल से करें तो दोनों बहुत कुछ मिलते-जुलते हैं। दोनों में बाह्य रक्षा हेतु एक प्रकार की कड़ी खाल सी रहती है जो कि अन्दर की चीजों की रक्षा करती है और दोनों में एक प्रकार की जीवनी शक्ति रहती है। जिससे पैदा होने वाले प्राणी की उत्पत्ति हो सके एकोन में पूर्ण रूप से एक अव्यक्त ओक है और अण्डे में मुर्गी का बच्चा अव्यक्त रूप में है। प्रत्येक को गर्मी, नमी और वायु को आवश्यकता है ताकि प्राणी की उत्पत्ति हो सके। एकोन के अन्दर सैलुलोस व शर्करा होती है जो कि बीज के मुख्य तत्व हैं और जिनसे कि खुराक पैदा होने वाले प्राणी को मिलती है। इसी प्रकार अण्डे में पीला भाग पैदा होने वाले मर्गी के बच्चे को कई दिन तक प इसके अतिरिक्त अण्डे तेजाब अधिक पैदा करते हैं और उनमें नाइटोजन चर्बी और फासफोरिस एसिड अधिक मात्रा में होती है और इस कारण से मनुष्य का प्राकृतिक आहार अन्डा नहीं हो सकता।
-डा. गोविन्द राज इस निश्चय पर पहुँचने के बाद कि मुर्गी के बच्चे में बीमारियां अधिक हो रही हैं जिसका कारण यह है कि आजकल कृत्रिम अप्राकृतिक उपायों से मुर्गियों को अत्यधिक अण्डे देने पर बाध्य किया जाता है तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि मुर्गियों का मांस खाने से मनुष्य की बड़ी आंत में हानिरहित जो वैसिलस कोलाई कमुनिस नामक कीटाणु रहते हैं उनमें से कुछ हानिकारक रूप धारण कर लेते हैं। यह सत्य हो या न हो पर इस बात पर विचार करना आवश्यक है, जबकि मुर्गियों के अत्यधिक उत्पादन पर हम सब ओर से विचार विमर्श करते हैं क्योंकि इसी परिस्थिति में पालतू जानवरों में जो रोग हो जाते हैं मनुष्य इसका उत्तरदायी है और एक दिन इसका प्रभाव मनुष्य पर बिना पड़े नहीं रह सकता।
-ज. ई०, र० मैकडोनल
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