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[ १७ मर्यादित कर्तव्य न होते हुए भी, पशुओं की रक्षा करने में सक्षम हैं । पशुओं को वध किए जाने की बनिस्बत रक्षा, देखभाल और प्यार किया जाना चाहिये। सूख रहे तालाब से मछली को बचा लेने जैसे छोटे-छोटे दया कार्यों पर हमारा कुछ खर्च नहीं होता।
हमारी विशेष सुविधायें सम्पूर्ण जगत बौद्ध सभ्यता के अनुसार संसार कई खण्डों में विभाजित है, जिसका एक खण्ड पशु आकारों से निर्मित है। अज्ञान, गूंगेपन और विचार शक्ति के अभाव में पशुओं के दुःख बने रहते हैं जबकि मनुष्य ऐसा नहीं हैं। मनुष्य का जन्म लेने की इस विशेष सुविधा का हमें उत्तम उपयोग करना चाहिए । जीवित प्राणी मात्र के लिए दया और प्यार जगाकर संसार-सागर से प्राणिमात्र को मुक्त रखने की भावना के साथ हमें बुद्ध-स्थिति को प्राप्त करना है ।
सभी तथ्यों से अधिक मुझे प्रतिदान के तत्व ने प्रभावित किया । जैसा आप बोयेंगे, वैसा ही फल पायेंगे। प्रत्येक प्रकार के कार्य का परिणाम भी तद्रूप होता है। अगर कोई दूसरे को नुकसान या आघात पहुंचाता है तो उसको भी वही अन्त सहना होता है-यह कर्म और फल के सम्बन्ध का सार्वलौकिक नियम है । भगवान बुद्ध ने सभी चेतन प्राणियों के लिए निर्देशित किया है कि प्यार और दया की भावना ही शान्तिपूर्ण संसार के निर्माण के लिए अधिक महत्वपूर्ण है । मनुष्य मात्र के कार्य-व्यापारों पर विशेष महत्व दिया है जो हमारे गूंगे पशु मित्रों की वास्तविकता से सम्बन्धित हैं । लंकावतारसूत्र में कहा गया है । कि सभी प्राणी-वे मनुष्य हो, पशु हों, बन्धु-बांधुवों की भांति और सनातन कर्मविधि के प्रभाव में आंतरिक रूप से जुड़े हैं। जैसे एक व्यक्ति अपने संबंधी का मांस नहीं खाएगा, उसी तरह मांसाहार से भी परहेज किया जाना चाहिये । सभी पशुओं के साथ भाई-बहनों जैसा व्यवहार करना है । सभी साधु-सन्यासियों ने मांसाहार को पूर्ण गुणात्मकता की दया और प्यार उपजाने में बाधक मानते हुए मांसाहार से परहेज किया है। इसी प्रकार मांस-भोजन तांत्रिक-शक्ति की सिद्धि प्राप्त करने में भी बाधक है।
हमारे पशु-मित्र देखभाल और प्यार के लिए हैं। वे हमारे अथवा हमारी आजीविका के लिए ही जीवित नहीं रहते वरन इस संसार के सौन्दर्य और सूख में विशिष्ट जैवी विधि से अपनी भूमिका का निर्वाह करते हैं।
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