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वास्तविक दया और अहिंसा ही शाकाहार का सही आधार
-कविराज पं० शिव शर्मा, आयुर्वेदाचार्य, बम्बई
निर्ममता के विपरीत बयालता, गन्दगी के विपरीत स्वच्छता, कुरूपता के. विरोध में सौन्दर्य, कठोरता के विपरीत संवेदनशीलता, कष्ट देने के विपरीत क्षमा, जीने का तर्क एवं मानसिक शांति को प्रोत्साहित करता है। शाकाहारी सिद्धान्त का सही आधार यही है ।
प्रत्येक शाकाहारी गुण, दया और अहिंसा का सर्वोत्कृष्ट आदर्श नहीं होता। शाकाहारियों में भी हृदयहीन, चोर-बाजारिये, ब्याज पर ऋण देने वाले, कर चुराने वाले और हत्या-डकैती और बलात्कार के अपराधी होते हैं, पर इतिहास ऐसी किसी घटना को उद्घाटित नहीं करता जहाँ शाकाहारी समुदाय अमानवीय हत्याकाण्ड, सामूहिक कत्ल और बलात्कार में संलग्न रहे हों। शाकाहारी पथ्यों के प्रभावों का तभी अध्ययन किया जाना चाहिए जबकि दो अलग समुदाय अनुरूप प्रभावों और दीर्घकालीन पृष्ठभूमि से संबंधित हों।
___यह विश्वास करना भारी भूल होगी कि वनस्पतियों का भोजन ही शाकाहारी जीवन पद्धति का प्रतिनिधित्व करता है। भारतीय जीवन-विज्ञान-आयुर्वेद में मानसी-देहि मनुष्य जाति की दैहिक-मानसिक गतिविधि के आकारों पर उनके प्रभाव को दष्टिगत रखते हए वनस्पति-खाद्य को अलग-अलग वर्गों में विभाजित किया गया है। अधिक मिर्च-मसाले, तीखे और तले हुए भोजन का निरन्तर उपयोग मस्तिष्क को श्रेष्ठ और उच्च भावनाओं और गतिविधिक सांचों से विकसित जड़ता की ओर ले जाता है। यहां तक कि भिन्न-भिन्न प्रकार के पशुओं का दूध-पथ्य भी शरीर और मस्तिष्क को अलग-अलग प्रभावित करता है। इस प्रकार गाय का दूध उत्तम ज्ञान विकसित करता है। जबकि भैंस का दूध केवल बलिष्ठ शरीर ही बनाता है। शरीर और मस्तिष्क के विकास के लिए सर्वाधिक वांछित लक्षण बनाने वाले पथ्य का गुण बताने के लिए आयुर्वेद 'सात्विक' शब्द का उपयोग करता है।
तामसिक भोजन आलस्य, मूढ़ता और जड़ता देता है, राजसी केवल शक्ति और तेजी जो कि सात्विक के साथ जुड़कर वांछित और तामसिक के साथ जुड़कर मस्तिष्क और शरीर को अवांछित लक्षण देता है।
मनुष्य का मस्तिष्क परिपक्व हो रहा है पर धीरे-धीरे शाकाहार का सिद्धांत बहुधा विवाद का विषय बन जाता है क्योंकि अनुरागी शाकाहारी, शाकाहारी सिद्धान्त के अभ्यास के आर्थिक और शारीरिक पक्षों पर अधिक बल देते हैं। इस तरह के तर्क वनस्पतियों-फलों की तुलना में मांस-पथ्य में अधिक प्रचुरता से उपलब्ध क्षार-अम्लों और पोषकतत्वों की ओर उन्मुख करते हैं। कुछ विशेषज्ञों ने शरीरिक शक्ति के रूप में क्षार अम्लों को अनुचित महत्ता दे दी है जो उन्हें स्पष्ट लगेगी जिन्होंने हाथी को पेड़ उखाड़ते या भीमकाय मनुष्य को घड़ियाल की थूथन चीरते देख
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