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ने परमात्मा को अन्त में रखा और कहा-परमात्मा तो तुम्ही हो। अपने को जानो और स्वयं परमात्मा हो जाओ, अपने को जीतो और स्वयं 'जिन' हो जाओ, 'अर्हत' हो जाओ। अपने को शुद्ध करो और स्वयं 'सिद्ध' बन जाओ।
जैन दर्शन का मंगल मन्त्र है
जो अर्हन्त हो गये, उन सबको मैं प्रणाम करता हूं। जिन्होंने सिद्धि को वरण किया, उन सिद्धों को वन्दन करता हूं। जो अर्हत् होने को प्रयत्नरत हैं, उन आचार्यों को नमस्कार करता हूं। जो यह रास्ता दिखाते हैं उन उपाध्यायों को नमस्कार करता हूं। जितने भी सत्पुरुष इस मार्ग पर चल रहे हैं, उन सबको मैं प्रणाम करता हूं।
णमो अरहताणं । णमो सिद्धाणं । णमो आयरियाणं । णमो उवज्झायाणं ।
णमो लोए सव्यसाहणं । इससे व्यापक दृष्टिकोण और मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा क्या हो सकती है ?
भगवान महावीर ने जैन दर्शन के इन उदार सिद्धान्तों के प्रसार के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन अर्पित कर दिया और स्वयंसिद्ध हो गये। उनके २५०० वें निर्वाण शताब्दी वर्ष में यदि हम उनके चिन्तन का अमृत जन-जन तक पहुंचा सके तो बहत बड़ा पुण्य-कार्य होगा।
Porall
बहाना
khula
परस्परोपपहो जीवानान
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