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भाषा स्तुतियाँ
महावीर छन्द प्रणमीय बीर विबुहजण रंजण, मदमइ मान महाभय भंजण । गुण गण वर्णन करीय बखाणु, यति जण योगीय जीवन जाणु ॥ नेह गेह शुद्ध देश विदेहह, कुंडलपुर वर पुहवि सुदेहह । सिद्धि वृद्धि वर्धक सिद्धारथ, नर वर पूजित नरपति सारथ ॥
सिद्धारथ सुत सिद्धि-वृद्धि वांछित वर दायक, प्रियकारिणी वर पुत्र सप्तहस्तोन्नत कायकं । द्वासप्तति वर वर्ष आयु सिंहांक सुमंडित, चामीकर वर वर्ण शरण गौतम यति पंडित । गर्भ दोष दूषण रहित शुद्ध गर्भ कल्याण करण, 'शुभचन्द्र सूरि' सेवित सदा पुहवि पाप पंकह हरण ।
-शुभचन्द्र भट्टारक
वीरजिन स्तुति दिढ़ कर्माचल दलन पवि, मवि सरोज रवि राय । कंचन छवि कर जोर कवि, नमत वीर जिन पाय ॥ रहौ दूर अंतर की महिमा, बाहिज गुनवरनन बल का पै। एक हजार आठ लच्छन तन, तेज कोटि रवि किरनि उथापै ॥ सुरपति सहस आंख अंजुलिसौ, रूपामृत पीवत नहिं धापै । तुम बिन कौन समर्थ वीर जिन, जगसौ काढ़ि मोख मैं थापै ॥
-भूधरदास
पद
अब मोह तार लेहु महावीर ।। सिद्धारथ-नन्दन जगवन्दन, पाप निकन्दन धीर ॥१॥ ज्ञानी ध्यानी दानी जानी, वानी गहन गंभीर । मोक्ष के कारण दोष निवारण, रोष विदारण वीर ॥२॥ समता सूरत आनन्द पूरत, चूरत आपद पीर ।
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