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दुखिया है जग, डगमग पग हैं, आओ, आकर बांह थाम लो । हे युग-पुरुष, वंद्य युग-युग के, जन जन के सादर प्रणाम लो ॥
- विश्वदेव शर्मा
देवों के देव
हे देवों के देव ! महाव्रत ! तापस पुंज ! अनामय । कीरी- कुंजर कनकन के तुम करुना मित्र, तुम्हारी जय ॥ राज हेम सुख जगती का तज, ग्यान ज्योति को अवनी लाने । छीन किया काया तप भारी, स्वयं ज्ञान आया अपनाने ॥ रिजुपालिका नदी के तट में, पाया था शीर्षस्थ प्रकाश । अरे जितेन्द्रिय ! जैन धर्म की, करूना सी, जगती की आश ॥ घूम घूम कर उपदेशों का, कोशल दिया मगध नवजूस । आज आज भी आज जागरित, जैन धर्म - शाश्वत - पीयूष ॥ निर्मम थे बलिदान यज्ञ वे, सिखलाया सत्कर्म अछोर । तर्क प्राण ! तुम सदाचार की, जाग्रत कर दी महा हिलोर ॥ आज तुम्हारे उपदेशों की, दिविज देव! अमृतवानी । गगन मगन है आकुल-व्याकुल, आज धरा हिंसा अकुलानी ॥ तू साधक ! नव दिव्य दृष्टि से, ज्ञान ज्योति जो फैलाई । अद्यावधि नव चारु चाँदनी, जन जन उर प्रकाश लाई ॥ आज देव-उपदेशों से तव, धरा त्राण है पा सकती । दिव्य दृष्टि की उन राहों से, मानव संस्कृति बच सकती ॥ शतशत नमन ! पूज्य ! हे साधक महावीर स्वीकार करो । हिंसा व्यथित धरित्री कंपित, जगत
क्रूरता क्षार करो ॥ - रामकरन शुक्ल
वीर वन्दना
समस्त संसार-समुद्र-सेतु को, सुरेन्द्र-संपूजित-धर्म-केतु को । अनन्त आभामय वीर विक्रमी महा महावीर ! प्रणाम आप को ॥ सदैव इन्द्रादिक पूजते जिन्हें, सराहते हैं अनन्त भू में जिनकी गुणावली, विहार में
मुनि - सूरि - सिद्ध भी ।
मग्न अभीत सिंह सी ॥
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