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भगवान महावीर के चरणों में वीर, तेरी राह को यदि विश्व सारा जान जाता, मिट गए होते कलह सब,
तूने परस्पर प्रेम का, शान्ति का वरदान पाता। सबको दिया संदेश, प्रभुवर, मनुज देवी-देवताओं के,
भेद सारे दूर करने को बवन्डर से था घिरा,
दिया वर बहुत सुन्दर । भूलकर निज शक्ति उनके,
द्वेष औ' एकान्त को विफल चरणों में गिरा।
तूने सदा मिथ्यात्व माना, छोड़कर पुरुषार्थ अपना,
ले अपेक्षावाद का, मांगता था वर उन्हीं से,
अवलम्ब सबको सत्य जाना। तूने कहा तब, “ए मनुज",
हाय ! जीवन में इसे यदि, क्यों ढूंढता बाहर कहीं है।
क्षुब्ध मनुज उतार पाता, तू स्वयं ही शुभ-अशुभ निज, वीर, तेरी राह को यदि, भाग्य- रेखा का विधाता।
विश्व सारा जान जाता। वीर, तेरी राह को यदि,
मिट गए होते कलह सब, विश्व सारा जान जाता ॥ शान्ति का वरदान पाता॥
-इन्द्रचन्द्र शास्त्री ओ विद्रोही ! ओ तीर्थकर !! तेरा वह धर्मचक्र-वर्तन !!!
लेकर अनंग मोहन यौवन, अधरों पर बकिम धनुताने । मनसिज की पुष्प-धनुष-डोरी, तुम तोड़ चले ओ मस्ताने ॥ नन्दन कानन में अप्सरियाँ वन कमल विछी तेरे पथ में। पद-रज की उनको दे पराग, तू लौट चढ़ा पावक रथ में ॥
ओ विद्रही ! ओ तीर्थकर !! तेरा वह धर्मचक्र-वर्तन !!! जिससे तू भेद गया अर्हत ! चिर जन्म-मरण के गठबन्धन !! पावापुर की वे सर लहरें गाती हैं। अब भी मुक्तिगान ! प्रकटा उषा में ज्योति पुरुष ! वह झांका तीर्थंकर महान !!
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