________________
भगवान महावीर के जीवन पर एक दृष्टि
-पं० हीरालाल सिद्धांताचार्य ब्यावर
भगवान महावीर कितने महान थे, उनका ज्ञान कितना विशाल था, इसे उनके ही समकालीन भगवान बुद्ध के शब्दों में देखिए
"एकमिदाह, महानाम, समयं, राजंगहे, विहरामि गिज्झकटे पन्वते । तेन खो पन समयेन संबहुला निगण्ठा इसिगिलियस्से कालासिलायं उब्भत्थका होन्ति आसन पटिक्खित्ता, ओपक्कमिका दुक्खा तिप्पा कटुका वेदना वेदयन्ति । अथ खो हां, महानाम, सायण्ह समयं पटिसल्लाणा बूढिढतो येन इसिगिलि पस्सम काणासिला येन ते निगण्ठा तेन उपसंकम्मि। उणसंकमित्तेवा ते निगठे एतद्वोंचम: किन्नु तुम्हें आवसो निगण्ठा उभट्टका आसनपटिक्खित्ता, ओपक्कमिका दुक्खा तिप्पा कटुका वेदना वेदियथाति। एवं वुत्ते, महानाम, ते निगण्ठा में एतदबोचु निगण्ठा, आबुसो नातपुत्तो सम्वजु, सव्वदस्सावी अपरिसेसं ज्ञान स दस्सनं परिजाति:, चरतो च मे तिट्टतो च सुत्तस्स च जागरस्स च सततं समितं ज्ञान दस्सनं पक्चपट्रितंति:, सो एवं आहः अस्थि खो वो निगण्ठा पुत्वे पापं कम्मं कतं, त इमाय कटुकाय दुक्करिकारिकाय निज्जरेथ यं पनेत्तय एतरहि कायेन संवुता, वाचाय संवुता, मनसा संवुता तं आयति पापस्स कम्मस्स अकरणं, इति पुराणानं कम्मानं तपसा व्यन्तिभावा नवानं कम्मानं अकरणा आयति अनवस्सवो, आयति अनवस्सवा कम्मक्खयो, कम्मक्खयो दुक्खक्खयो, दुक्खक्खया वेदनाक्खयो, वेदनाक्खया सव्वं दुक्खं निज्जिण्णं भविस्सति तं च पन अम्हाकं रुच्चति चेव खमति च तेन च अम्हा अत्तमना ति ।"
भावार्य-भगवान बुद्ध कहते हैं, हे महानाम ! मैं एक समय राजगृह में गद्धकूट नामक पर्वत पर विहार कर रहा था। उसी समय ऋषिगिरि के पास कालशिला (नामक पर्वत) पर बहुत से निर्ग्रन्थ (जैन मुनि) आसन छोड़ उपक्रम कर रहे थे और तीव्र तपस्या में प्रवृत्त थे। हे महानाम, मैं सायंकाल के समय उन निर्ग्रन्थों के पास गया और उनसे बोला, अहो निर्ग्रन्थ, तुम आसन छोड़ उपक्रम कर क्यों ऐसी घोर तपस्या की वेदना का अनुभव कर रहे हो ? हे महानाम ! जब मैंने उनसे ऐसा कहा तब वे निर्ग्रन्थ इस प्रकार बोले--अहो, निर्ग्रन्थ ज्ञातपुत्र (महावीर) सर्वज्ञ और सर्वदर्शी हैं, वे अशेष ज्ञान और दर्शन के ज्ञाता हैं। चलते, ठहरते, सोते, जागते समस्त अवस्थाओं में सदैव उनका ज्ञान और दर्शन उपस्थित रहता है। उन्होंने कहा है-निर्ग्रन्थों तुमने पूर्व जन्म में पाप कर्म किये हैं उनकी इस घोर दुश्चर तपस्या से निर्जरा कर डालो। मन, वचन और काय की संवृत्ति से (नये) पाप नहीं बंधते और तपस्या से पुराने पापों का व्यय हो जाता है। इस प्रकार नये पापों के रुक जाने से कर्मो का क्षय होता है, कर्मक्षय से दु:खक्षय होता है, दुःखक्षय से वेदनाक्षय और वेदनाक्षय से सर्व दु:खों की निर्जरा हो जाती है। इस पर बुद्ध कहते हैं कि यह कथन हमारे मन को ठीक जंचता है।
मज्झिमनिकाय के इस कथन से स्पष्ट ज्ञात होता है कि भगवान महावीर अपने समय में एक महान तत्ववेत्ता, सर्वज्ञ और सर्वदर्शी के रूप में प्रसिद्ध थे। उनके सिद्धान्त कार्यकारण सम्बन्ध पर आधारित हैं, अत: वे सब वैज्ञानिक, बुद्धिगम्य एवं ग्राह्य हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org