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जहाँ तक मगध के ऐतिहासिक नरेश बिम्बिसार और उसके पुत्र एवं उत्तराधिकारी अजातशत्र का प्रश्न है, बिम्बिसार तो जैन परम्परा में श्रेणिक नाम से प्रसिद्ध है । उसकी पट्टराणी चेल्लना भगवान महावीर की मौसी थी तथा उनकी परम भक्त श्राविका भी थी। स्वयं श्रीणिक भी महावीर का परम भक्त शिष्य, प्रमुख श्रोता और श्रावकोत्तम था। उसकी मृत्यु महावीर निर्वाण के पूर्व ही हो चुकी थी। श्रेणिक और चेल्लना का पुत्र सम्राट अजातशत्रु अपरनाम कुणिक भी महावीर का भक्त था । एक जैन अनुश्रुति के अनुसार अजातशत्रु के राज्य के १६ वें वर्ष में महावीर निर्वाण हुआ था, किन्तु मगध का सिंहासन प्राप्त करने के पूर्व
जातशत्रु आठ वर्ष तक चम्पा (अंगदेश) का शासक, अपने पिता के जीवनकाल में ही, रह चुका था, और ऐसा प्रतीत होता है कि यह आठ वर्ष उक्त सोलह वर्ष में सम्मिलित हैं ।61 इस प्रकार अजातशत्रु ई० पू० ४४३ के लगभग चम्पा का शासक नियुक्त हुआ और ई० पू० ४३५ के लगभग मगध के सिंहासन पर बैठा था। सम्भवतया इसी समय के लगभग गौतम बुद्ध को गया में निर्वाण अर्थात् बोधिलाभ हुआ था और उसके लगभग ४५ वर्ष पश्चात् ई० पू० ४८३ में कुशीनगर में उनका परिनिर्वाण हुआ था । बुद्ध परिनिर्वाण की यह तिथि वर्तमान में सर्वाधिक विद्वन्मान्य है, और इसके साथ उस बौद्ध अनुश्रुति की भी संगति बैठ जाती है जिसके अनुसार उनका निर्वाण (बोधिप्राप्ति) अजातशत्रु के (चम्पा में शासनारंभ के) आठवें वर्ष में हुआ था।
इस विषय में तो कोई मतभेद है ही नहीं कि महावीर और बुद्ध समसामयिक थे। प्राचीन पालि साहित्य से यह भी स्पष्ट सूचित होता है कि बुद्ध महावीर निर्वाण के उपरान्त भी जीवित रहे थे, वह उनके प्रति बड़ा आदर भाव भी रखते थे और एक अवसर पर, तत्कालीन तीर्थकों के प्रकरण में, उन्होंने महावीर का उल्लेख 'अद्धगतोवयो' (अधेड़ उम्रवाला) रूप में किया था तथा स्वयं के लिए 'नब्ब' पबज्जित' (नवदीक्षित) पद का प्रयोग किया था ।62 अतएव यह न मानने के लिए कोई कारण नहीं है कि महावीर बुद्ध से पर्याप्त वयज्येष्ठ थे।
इसके अतिरिक्त, बुद्ध परिनिर्वाण की तिथि के सम्बन्ध में स्वंय बौद्ध अनुश्र तियों में परस्पर भारी मतभेद है-सिंहली अनुश्रुति ई० पू० ५४४ मानती है, बर्मी ई० पू० ५०१, तिब्बती ई० पू० ४८८ और कैन्टोनी (चीनी) ई० पू० ४८६ मानती हैं। आधुनिक विद्वानों में भी कुछ ई० पू० ५०१, कुछ ई० पू० ४७७ और कुछ ई० पू० ४५३ भी निश्चित करते हैं । किन्तु सर्वाधिक मान्य मत इस घटना को ईसा पूर्व ४८३ में निश्चित करता
61. देखिए, भगवती सूत्र; एन एडवान्स्ड हिस्टरी आफ इंडिया (पृ० ७३) के विद्वान लेखक भी इसी:मत का
समर्थन करते प्रतीत होते हैं ।
'एक समये भगवो सक्केस, विहरति....तेन खोपन समयेन निगण्ठो नातपुत्तो पावायं अधुना कालकतो होति' मज्झिमनिकाय का सामगामसुत्त, तथा उसी का उपालिसुत्त और दीधनिकाय का पासादिक सुत्तन्त भी द्रष्टव्य हैं । और देखिए राहुल मांस्कृत्यायन कृत 'बुद्धचर्या', केम्बिन हिस्ट्री आफ इंडिया, जिल्द I, (१९३५ ई०), पृ० १५६; जर्नल आर० ए० एस०. १८८५ ई०, पृ० ६६५ आदि
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