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है 163 अतएव बुद्ध निर्वाण की तिथि उपरोक्त विभिन्न तिथियों में से कोई भी क्यों न रही हो, उससे बुद्ध का महावीर के कनिष्ट समकालीन होने में कोई अन्तर नहीं पड़ता । केवल ई० पू० ५४४ की तिथि इस स्थापना में बाधक हो सकती है, किन्तु उसमें यदि कुछ सत्यांश है तो यही कि वह बुद्ध के बोधि लाभ की तिथि हो सकती है, जिसे बौद्ध परम्परा में निर्वाण भी कहा जाता है। इतना ही नहीं, महावीर निर्वाणोपरान्त अगले ६२ वर्षों में गौतम, सुधर्मा और जम्बू नाम के उनके तीन उत्तराधिकारी क्रमशः हुए जो भगवान महावीर की भांति ही अपने जीवन में कैवल्य प्राप्त करके अर्हत् केवलि या (निगंठतित्थक) हुए थे, और यह तीनों भी बुद्ध के समकालीन थे, अतएव सामगामसुत्त का उपरोक्त कथन उनमें से किसी के लिए भी हुआ हो सकता है ।
इस प्रकार, महावीर निर्वाण काल असंदिग्ध रूप से ईसापूर्व ५२७ में सुनिश्चित होता है, जिसकी पुष्टि अन्तरंग एवं बाह्य विविध प्रमाण बाहुल्य से होती है। ज्ञात ऐतिहासिक प्रतिपत्तियों से भी उसमें कहीं कोई विरोध नहीं आता। इसे केवल एक वर्ष आगे ( ई० पू० ५२६) या एक वर्ष पीछे ( ई० पू० ५२८ ) जो कतियप विद्वान स्थिर करते हैं, वह महावीर की आयु में गर्भकाल आदि गौण तथ्यों के सम्मिलित करने या न करने अथवा निर्वाण वर्ष को प्रारंभ या समाप्ति का सूचक मानने आदि कारणों से करते हैं । किन्तु इस तिथि को एकाधिक वर्षो से आगे या पीछे नहीं ले जाया जा सकता । उसे स्थिर करने में परिवर्तनीय, अनिश्चित या अर्ध-निश्चित प्रति पत्तियों और अनुमानों को आधार बनाने की कोई आवश्यकता नहीं है । वह एक प्रकार से स्वयं सिद्ध है ।
निर्वाण के समय भगवान महावीर की आयु ७१ वर्ष, ६ मास और १७ दिन थी ।64 उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं की तिथियाँ नीचे लिखे अनुसार हैं
जन्म - चैत्र शुक्ल त्रयोदशी, मार्च ३०, ई० पू० ५९९, वैशाली के निकट कुण्डग्राम में ।
अभिनिष्क्रमण - मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी, नवम्बर ११, ई० पू० ५७०, ज्ञातृखण्ड वन में ।
कैवल्य प्राप्ति - वैशाख शुक्ल दशमी, अप्रैल २६, ई० पू० ५५७, ऋजुकूला तटवर्ती जृ भिकग्राम के बाहर । धर्मचक्र प्रवर्तन—श्रावण कृष्ण प्रतिपदा, अगस्त १, ई० पू० ५५७, राजगृह के विपुलाचल पर ।
63. यह तिथि प्रो० गीगर, डा० फ्लीट, डा० विक्रमसिंथे, आदि प्रकाण्ड विद्वानों एवं प्राच्यविदों ने निश्चित की है - देखिए डी० आर० भंडारकर वाल्यूम, पृ० ३२९ - ३३०,
भगवान महावीर की उपरोक्त आयु स्व० आचार्य जुगल किशोर मुख्तार ने अपनी पुस्तक 'भगवान महावीर और उनका समय' (दिल्ली १९३४, पृ० १३, ३१ ) में पर्याप्त उहापोह के पश्चात् निश्चित की थी । कुछएक गर्भकाल के ९ मास ७ दिन १२ घंटों को जोड़ते हैं । किन्हीं की गणना के अनुसार उनकी
कुछ विद्वान इसमें एक या दो दिन की वृद्धि करते हैं । इसमें सम्मिलित रहा मानते हैं, जबकि कुछ अलग से पूरी आयु ७१ वर्ष ३ मास २५ दिन १२ घंटे बैठती है ।
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