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ख-३
[ ५५ सुप्रसिद्ध ज्योतिषी वराहमिहिर के ज्येष्ठ भ्राता थे और वराहमिहिर की सुनिश्चित तिथि शक संवत् ४२७, अर्थात् ५०५ ई० है 145
यतिवृषभकृत 'तिलोयपण्णति' के अनुसार शक संवत् की सर्वप्रथम प्रवृत्ति महावीर नि० सं० ४६१ में हुई थी, और अन्यत्र हमने यह सप्रमाण सिद्ध किया है कि उक्त पुरातन शक संवत् का प्रारंभ ईसापूर्व ६६ में हुआ था 146
इसी तथा अन्य अनेक ग्रन्थों में प्रचलित शक संवत (तथाकथित शक शालिवाहन) का प्रवर्तन महावीर निर्वाण के ६०५ वर्ष ५ मास पश्चात हुआ बताया है, जो सर्वमान्य मत के अनुसार ईस्वी सन् ७८ निश्चित होता है।47 हरिवंशकार जिनसेन (७८३ ई०) भी शक संवत् के प्रारम्भ की इसी तिथि का समर्थन करते हैं, और वह उसके तथा गुप्तवंश की स्थापना के मध्य २४२ वर्ष का अन्तर बताते हैं। गुप्त राज्य की स्थापन संवत् के प्रर्वतन की इतिहास मान्य तिथि ३१९-३२० ई० है, जिसके साथ उक्त अनुश्रुति की संगति ठीक-ठीक बैठ जाती है।48 प्रसिद्ध अरब विद्वान अल-बेरूनी के मतानुसार भी उपरोक्त अन्तराल २४१ वर्ष का था। 49
साहित्य में महावीर संवत का प्राचीनतम उपलब्ध प्रयोग विमलसूरि के पउमचरिउ में प्राप्त होता है जहाँ स्वयं उक्त ग्रन्थ की रचना-तिथि महावीर संवत् ५३० (अर्थात सन् ईस्वी ३) दी है 150
शिलालेखों में महावीर संवत का प्राचीनतम ज्ञात प्रयोग म० नि०सं० ८४ (ईसा पूर्व ४४३) के बड़ली
44. ज्यो. प्र. जैन, वही, पृ० १६३. सम्यक्त्व सप्ततिकावृत्ति तथा मेरुतुंगकृत प्रबंध-चिन्तामणि में इन भद्रबाहु
को वराहमिहिर का सहोदर बताया है। 45. ए० मेकडानेल-संस्कृत साहित्य का इतिहास, पृ० ५६४, वि० स्मिथ-आक्सफोर्ड हिस्ट्री आफ इंडिया
(१९२०), पृ० १६० 46. ज्यो० प्र जैन, वही, अध्याय ५-दी अलियर शक इरा, पृ० ८२.९९ 47. वही, पृ. ६९-८१ 48. वही, पृ० ४९, १९६, २५७ 49. देखिए-ई० सचाउ द्वारा संपादित एवं अनुवादित 'अल वेरुनीज इंडिया,' तथा १९१९ में पूना में हुए
अखिल प्राच्य विद्या सम्मेलन में पठित डा०के०बी० पाठक का निबन्ध, पृ० १३३ 50. पंचेव वास सया दुसमाए तीसवरस संजुत्ता। वीरे सिद्धिमुवगए तओ निबदधं इमं चरियं ।।-अंतिम सर्ग की गा० १०३
-कई विद्वान इस तिथि में शंका करते हैं।
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