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ख-३
दर्शन एवं सिद्धान्तों को व्यवस्थित किया । उन्होंने अपने अनेकान्तिक स्याद्वाद दर्शन, स्वानुभूत प्रौढ़ तत्त्वज्ञान, अहिंसा, अपरिग्रह एवं जीवमात्र की समानता के सिद्धान्तों तथा स्वस्थ प्रगतिगामी आशावाद के प्रचार द्वारा भारतीय समाज की दार्शनिक, वैचारिक, धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक आदि विविध विषमताओं के उन्मूलन का पथ प्रशस्त किया। उनके महान प्रतिद्वन्द्वियों ने भी उन्हें वीतराग, सर्वज्ञ और सर्वदर्शी मानकर उनकी प्रतिष्ठा की थी।
इस प्रकार ईसापूर्व छठी शती की वह वैचारिक क्रान्ति या धार्मिक आन्दोलन अपने परिणामों में क्षेत्रातीत एवं कालातीत सिद्ध हुआ। उसने उस युग विशेष की ही नहीं, मानव जगत की अनेक शाश्वत चुनौतियों का डटकर सामना किया और मानव की स्थायी सुख-शान्ति के लिए उक्त चुनौतियों के समाधान खोजे एवं प्रस्तुत किये।
* भगवान महावीर *
भगवान महावीर तपः प्रधान संस्कृति के उज्जवल प्रतीक हैं। भोगों से भरे इस संसार में एक ऐसी स्थिति भी संभव है जिसमें मनुष्य का अडिग मन निरन्तर संयम और प्रकाश के सान्निध्य में रहता हो-इस सत्य की विश्वसनीय प्रयोगशाला भगवान महावीर का जीवन है। वर्द्धमान महावीर गौतम बुद्ध की भांति नितान्त ऐतिहासिक व्यक्ति हैं। माता-पिता के द्वारा उन्हें भी हाड़-मांस का शरीर प्राप्त हुआ था। अन्य मानवों की भांति वे भी कच्चा दूध पीकर बढ़े थे; किन्तु उनका उदात्त मन अलौकिक था। तम और ज्योति, सत्य और अनत के संघर्ष में एक बार जो मार्ग उन्होंने स्वीकार किया, उस पर दृढ़ता से पैर रखकर हम उन्हें निरन्तर आगे बढ़ते हुए देखते हैं। उन्होंने अपने मन को अखण्ड ब्रह्मचर्य की आँच में जैसा तपाया था, उसकी तुलना में रखने के लिए अन्य उदाहरण कम ही मिलेंगे। जिस आध्यात्म केन्द्र में इस प्रकार की सिद्धि प्राप्ति की जाती है उसकी धाराएँ देश और काल में अपना निस्सीम प्रभाव डालती हैं। महावीर का वह प्रभाव आज भी अमर है । अध्यात्म के क्षेत्र में मनष्य कैसा साम्राज्य निमित कर सकता है, उस मार्ग में कितनी दूर तक वह अपनी जन्मसिद्ध महिमा का अधिकारी बन सकता है, इसका ज्ञान हमें महावीर के जीवन से प्राप्त होता है । बार-बार हमारा मन उनकी फौलादी दृढ़ता से प्रभावित होता है । कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़े रहकर शरीर के सुख-दुःखों से निरपेक्ष रहते हुए उन्होंने काय साधन के अत्यन्त उत्कृष्ट आदर्श को प्रत्यक्ष दिखाया था। निर्बल संकल्प का व्यक्ति उस आदर्श को मानवी पहुंच से बाहर भले ही समझे, पर उसकी सत्यता में कोई संदेह नहीं हो सकता । तीर्थकर महावीर उस सत्यात्मक परिधि के केन्द्र में अखण्ड प्रज्वलित दीप की भाँति हमारे सामने आते हैं। यद्यपि यह पय अत्यन्त कठिन था; किन्त हम उनके कृतज्ञ हैं कि उस मार्ग पर जब वे एक बार चले तो न तो उनके पैर रुके और न डगमगाये । उन्होंने अन्त तक उसका निर्वाह किया। त्याग और तप के जीवन को रसमय शब्दों में प्रस्तुत करना कठिन है, किन्तु फिर भी इस सुन्दर जीवन में कितने ही मार्मिक स्थल हैं तथा कितनी ही ऐसी रेखाएं हैं जो उनके मानवीय रूप को साकार बनाती हैं।
सत्य, अहिंसा और ब्रह्मचर्य, तप और अपरिग्रह रूपी महान आदर्शों के प्रतीक भगवान महावीर हैं। इन महाव्रतों की अखण्ड साधना से उन्होंने जीवन का बुद्धिगम्य मार्ग निर्धारित किया था और भौतिक शरीर के प्रलोभनों से ऊपर उठकर अध्यात्म भावों की शाश्वत विजय स्थापित की थी। मन, वाणी और कर्म की साधना उच्च अनन्त जीवन के लिए कितनी दूर तक संभव है, इसका उदाहरण तीर्थकर महावीर का जीवन है। इस गम्भीर प्रज्ञा के कारण आगमों में महावीर को 'दीर्घप्रज्ञ' कहा गया है। ऐसे तीर्थकर का चरित्र धन्य है।
-डा० वासुदेव शरण अग्रवाल.
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