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भगवान महावीर-जीवन और दर्शन
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-मुनि श्री राकेश कुमार
महावीर अवतार और देव नहीं, मानव बनकर संसार में आए थे। इस मिट्टी में वे पले-पूसे थे और इसी मिटी पर उन्होंने अपना लक्ष्य प्राप्त किया था। उनके जीवन की कहानी आकाश की उड़ानें नहीं हैं. उनके स्वर कल्पना की लहरियों से नही उठे थे। अनुभूति की कसौटी पर खरे उतर कर हमारे सामने आये थे.। उनकी शारीरिक और मानसिक संवेदनाए मानवेतर नहीं थी। उनकी सतत गतिशील मानवता ने उन्हें महामानव बना दिया, जिसकी पृष्ठभूमि में विजय का संदेश है। वह विजय यी अन्धकार पर प्रकाश की, असत पर सत् की और मृत्यु पर अमरत्व की।
आदर्श श्रमण-श्रम, शम और सम की साधना करने वाले महावीर 'श्रमण' कहलाए। जैन आगम वाङमय में "समणे नाथपुत्ते" उनका मुष्य विशेषण रहा है। महावीर एक राजकुमार थे, उनके पास भौतिक सख साधनों की कमी नहीं थी। पर जीवन की इस बाहरी दिशा में उन्हें तृप्ति नहीं मिली। उन्हें संसार में बहुत बड़ा काम करना था ।
मह वीर गृहस्थ जीवन में भी बड़े निलिप्त भाव से रहे । कीचड़ में रहने वाले कमल-पत्र के उदाहरण को उन्होंने पूरा चरितार्थ किया। उनका सारा व्यवहार गहरा आदर्श लिए हुआ था, श्रमण जीवन की कठोर साधना में वे बड़ी दढ़ता के साथ आगे बढ़े थे। महावीर का तितिक्षा धर्म बहुत प्रसिद्ध है। शारीरिक और मानसिक सभी परिषहों को उन्होंने बड़ी समाधि के साथ सहन किया।
अपनी मंजिल पर पहुंचने के लिए भगवान महावीर ने घोर तप किया। अपने पूर्ववर्ती २३ तीर्थकरों से भी उन्होंने अधिक कष्ट सहन किए । किन्तु भगवान महावीर ने तपस्या का मतलब केवल भूखा रहना ही नहीं समझा था। उनके जीवन में अनेक यौगिक प्रयोग चलते थे। उनकी हर तपस्या के साथ ध्यान का अभिन्न सम्बन्ध था। उन्होंने भूखे रहने को बाहरी तप बताया, व ध्यान और स्वाध्यायको आभ्यन्तर तप ।
महावीर ने उस समय के अनेक अनार्य असभ्य प्रदेशों में भी विहार किया, जहां उग्र परिषहों का सामना करना पड़ा। पर उन्होंने किसी का सहारा नहीं लिया। स्वावलम्बन के आधार पर आगे बढ़े थे वे।
उन्होंने वाणी की अपेक्षा कर्म से अधिक प्रशिक्षण दिया ।
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